दर बदलू नेताओं का दौर खत्म जनता और युवाओं ने संभाली कमान

भदोही। राजनीति का रंग-ढंग तेजी से बदल रहा है। कभी कट्टर बयानों से सुर्खियां बटोरने वाले नेता और कभी अवसरवाद में पार्टी बदलने वाले दर-बदलु चेहरे—दोनों ही अब जनता की नजरों में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। लोग साफ कह रहे हैं कि अब उन्हें केवल विकास चाहिए, न कि नारेबाज़ी या अवसरवाद की राजनीति।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रतीक है। जनता अब जाति-धर्म के नारों या कट्टरता से प्रभावित होने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दे रही है।लेकिं क्या भदोही कि जनता के साथ वो सबकुछ हो रहा है जिसका उसने कल्पना किया था,सोशल मीडिया के इस दौर ने न केवल कट्टर नेताओं को बेनकाब किया है, बल्कि दर-बदलु नेताओं को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। लोग पूछने लगे हैं—जो नेता अपनी पार्टी के प्रति ईमानदार नहीं, वह जनता के प्रति कैसे होगा? यही वजह है कि बार-बार दलबदल करने वाले नेता जनता का भरोसा खोते जा रहे हैं।

समय समय पर भदोही से बाहरी नेताओं को भगाने और स्थानीय नेताओं को टिकट कि मांग भी किया।स्थानीय लोग यह भी चाहते थे कि जनपद का ही कोई हो जो प्रतिनिधित्व करे,लेकिं ऐसा नही हुआ।बीते चुनाव और वर्तमान स्थिति में बहुत फर्क आ चुका है,राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि अब कोई भी दल कट्टर या दर-बदलु चेहरों को आगे करने का जोखिम नहीं उठा सकता। क्योंकि जनता का मूड साफ है—वोट उसी को मिलेगा जो विकास और स्थिरता की राजनीति करेगा।जो जुमले बाजी करेगा वो राजनीति नही कर सकेगा हमे जुमला नही काम चाहिए। कुल मिलाकर, राजनीति का यह नया दौर बता रहा है कि कट्टरता और अवसरवाद का अध्याय अब ढलान पर है, और विकास का सूरज अपनी पूरी रोशनी के साथ उभर रहा है।

रिपोर्टर

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