वास्तुशास्त्र । पूर्व दिशा में दोष व बचाव के उपाय

यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट के रोगों से पीडित रहेगी।

यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है। घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी को गर्भहानि तक का सामना करना पडता है।

भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परेशान हो सकता है। यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है।

अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं।

बचाव के उपाय

पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा। पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, इसलिए पूर्वी दिवार पर सिद्ध ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें। पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें। धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी।

                     पंडित रविशंकर शास्त्री 

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