बेटी की विदाई

पहले हुआ रस्म सगाई का फिर तिलक हुआ वर का

जब द्वारे आयी वारात हुआ द्वार चार का सम्मान

कन्यादान हुआ जब पूरा आया समय विदाई का

हंसी खुशी सब काम हुआ था सारी रस्म अदाई का

बेटी के उस कातर स्वर ने बाबूल को झकझोर दिया

पूछ रही थी पापा तुमने क्या सचमुच में छोड़ दिया

अपने आंगन की फुलवारी मुझको सदा कहा तुमने

मेरे रोने को पलभर भी बिल्कुल नहीं सहा तुमने

क्या इस आंगन के कोने में मेरा कुछ स्थान नही

अब मेरे रोने का पापा तुमको बिल्कुल ध्यान नही

देखो अंतिम बार देहरी लोग मुझे पुजवाते है

आकर के पापा क्यों इनको आप नहीं धमकाते है

नहीं रोकते चाचा ताऊ भैया से भी आस नहीं

ऐसी भी क्या निष्ठुरता है कोई आता पास नहीं

बेटी की बातों को सुन के पिता नहीं रह सका खड़ा

उमड़ पड़े आंखों से आंसू बदहवास सा दौड़ पड़ा

कातर बछिया सी वह बेटी लिपट पिता से रोती थी

जैसे यादों के अक्षर वह अश्रु बिंदु से धोती थी

मां को लगा गोद से कोई मानों सब कुछ छीन चला

फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला

छोटा भाई भी कोने में बैठा बैठा सुबक रहा

उसको कौन करेगा चुप अब वह कोने में दुबक रहा

बेटी के जाने पर घर ने जाने क्या क्या खोया है

कभी न रोने वाला बापू फूट फूट कर रोया है

नातिन की देखभाल अच्छी तरह करूंगी मैं

घबरा मत उसकी नानी हूं ऐसा नहीं कहूंगी मैं

राह देखता तेरी बेटी , जल्दी से तू आना

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना

ना चाहूं मैं धन और वैभव ,बस चाहूं मैं तुझको

तू ही लक्ष्मी,तू ही शारदा, मिल जाएगी मुझको

सारी दुनिया है एक गुलशन,तू इसको महकाना

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना

बन कर रहना तू गुड़िया सी, थोड़ा सा इठलाना

ठुमक-ठुमक कर चलना घर में, पैंजिया खनकाना

चेहरा देख के तू शीशे में, कभी-कभी शर्माना

किलकारी से घर भर देना,सदा ही तू मुस्काना

उंगली पकड़ कर चलना मेरी, कांधे पर चढ़ जाना

आंचल में छुप जाना मां के, उसका दिल बहलाना

जनम-जनम से रही ये इच्छा, बेटी तुझको पाना

किलकारी से घर भर देना,सदा ही तू मुस्काना।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट