विश्वनाथ कारिडोर : ज्ञानवापी ने रोका प्रशासन का रास्ता

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना श्रीकाशी विश्वनाथ कारिडोर को लेकर आंदोलित काशी वासियों को उस समय राहत मिली जब ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर २५ वर्ष पूर्व दिये गये सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने भवनों पर घन चला रहे हाथों को रोक दिया। श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर के समीप ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए मस्‍जिद के पास के भवनों के ध्वस्तीकरण और नए निर्माण का विरोध किया है। कमेटी के सदस्यों ने कहा है कि प्रशासन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना कर रहा है। प्रशासन यदि उनकी बात नहीं सुनी तो फिर सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जायेगें । बताते चले कि वर्ष १९९२ में अयोध्‍या में बाबरी विध्‍वंस के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से श्रीकाशी विश्‍वनाथ मंदिर सहित पूरे ज्ञानवापी परिसर की सुरक्षा केंद्रीय एजेंसियों के हवाले कर दिया गया है। आजकल इस क्षेत्र में काशी के सांसद व प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना विश्‍वनाथ कॉरिडोर का काम तेजी से है। कारिडोर निर्माण के लिए खरीदे गए भवनों के ध्‍वस्‍तीकरण के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे के हिस्‍से की तरफ मंदिर का नया प्रवेश द्वार सामने आने से एक नया विवाद खड़ा हुआ है। मंदिर प्रशासन का कहना है कि करीब २००  वर्ष बाद सामने आए नये प्रवेश द्वार से आने वाले समय में श्रद्धालुओं को बाबा का दर्शन करने में काफी सहुलियत होगी। वहीं दूसरी तरफ अंजुमन इंतजामिया मस्जिद ने ज्ञानवापी मस्जिद के पास की जा रही तोड़फोड़ को सुप्रीम कोर्ट के १९९२ से लेकर १९९७  तक में दिए गये फैसलों का खुला उल्‍लंघन और इससे मंदिर - मस्जिद दोनों के लिए खतरा बताया है। फिलहाल तोड़फोड़ रोक दी गई है, लेकिन मंदिर या जिला प्रशासन का कोई अधिकारी इस बारे में बोलने को तैयार नहीं है। इस बाबत  अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के संयुक्त सचिव जनाब एस.एम. यासीन का कहना है कि मो. असलम उर्फ घूरे की ओर से दायर याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाए रखने के साथ ही पुख्‍ता सुरक्षा के इंतजाम करने के आदेश दिये हैं। माननीय न्यायालय के फैसले में यह भी कहा गया है कि इस बारे में किसी तरह की भ्रम की स्थिति या फिर दिशा-निर्देश को लेकर पक्षों के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खुला रहेगा। वाराणसी की स्‍थानीय न्यायालय में ब्रतानिया हुकूमत के दौर में चले सिविल सूट में फैसला ज्ञानवापी मस्जिद के पक्ष में रहा था। इसके बाद 1954 में हुए त्रिपक्षीय समझौते में इस बात का साफ जिक्र है कि ज्ञानवापी परिसर में कोई भी निर्माण या नया काम पक्षों की सहमति के बगैर नहीं हो सकेगा। यह समझौता तत्‍कालीन सिटी मजिस्‍ट्रेट गौरी शंकर सिंह, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद और हिन्‍दू पक्ष की ओर से व्‍यास पीठ के बीच हुआ था। वर्ष 1993 में वाराणसी के तत्‍कालीन जिलाधिकारी की ओर से जारी दिशा निर्देश में मंदिर के प्रवेश द्वारों का भी स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी का आरोप है कि वर्तमान प्रशासन इन सभी तथ्‍यों को दरकिनार कर मनमानी करने पर अमादा है। इस बाबत मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन ने कहा  कि ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास तोड़फोड़ और निर्माण का फैसला न्यायालय के निर्णय की अवहेलना है। नया रास्ता खोले जाने से मंदिर और मस्जिद दोनों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हुआ है। वहीं अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के सदर मौलाना अब्दुल ने कहा कि हमारी  यह कोशिश रही है कि प्रशासन न्यायालय के फैसले और तथ्य को समझे और इसी के अनुसार काम भी करे। उन्होंने कहा कि तमाम तर्कों के बाद भी अगर प्रशासन इसे नहीं समझता है तो हमारे पास सर्वोच्च न्यायालय में जाने का रास्ता खुला हुआ है।

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