कालाजार से बचाव के लिए प्रभावित इलाकों में 17 अगस्त से शुरू होगा दवा का छिड़काव
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Aug 17, 2023
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- भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि कालाजार के लक्षण
- छिड़काव से पूर्व फ्रंट लाइन वर्कर्स का किया जाएगा उन्मूखीकरण
आरा ।। जिले में कालाजार उन्मूलन को लेकर स्वास्थ्य विभाग प्रयासरत है। जिसके तहत वर्ष में दो बार कालाजार प्रभावित इलाकों में सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) पाउडर का छिड़काव भी कराया जाता है। ताकि, कालाजार के प्रभाव से दूसरे लोगों को बचाया जा सके। इसके लिए जिले के प्रभावित इलाकों क्रमवार में 17 अगस्त से दवाओं का छिड़काव शुरू किया जाएगा। कालाजार एक खतरनाक एवं जानलेवा बीमारी है। बरसात में उमस और गर्मी के बीच इसका खतरा अधिक बढ़ जाता है। कालाजार लिसमैनिया डोनोवाणी नामक परजीवी से होता है। जिसका प्रसार संक्रमित बालू मक्खी द्वारा होता है। संक्रमित मरीज को काटने के बाद यदि बालू मक्खी किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो परजीवी स्वस्थ व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है। इस बीमारी में दो हफ्तों से ज्यादा बुखार रहता है।
लक्षण दिखने पर कराएं जांच :
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी सह जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. केएन सिन्हा ने बताया, कालाजार में मरीज को बार-बार बुखार आने लगता है। इसलिए इसके लक्षणों की पहचान बेहतद जरूरी है। यदि समय पर इसका इलाज शुरू नहीं किया तो मरीज की जान भी जा सकती है। इस बीमारी में बुखार के साथ भूख में कमी, वजन का घटना, थकान महसूस होना, पेट का बढ़ जाना आदि इसके लक्षण के रूप में दिखाई देने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को तुरंत नजदीक के अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवानी चाहिए। ठीक होने के बाद भी कुछ व्यक्ति के शरीर पर चकता या दाग होने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को भी अस्पताल जाकर अपनी जांच करानी चाहिए। साथ ही, इससे ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। ऐसे में जब किसी में लगातार बुखार के लक्षण दिखाई दें, तो वो तत्काल जाकर उसकी जांच कराएं।
कम रोशनी और नमी वाले स्थानों पर रहती है बालू मक्खी :
डॉ. सिन्हा ने बताया, मिट्टी और बिना प्लास्टर के घरों में स्थित दरारों में बालू मक्खी के छिपने की संभावना अधिक रहती है। अमूमन बालू मक्खी कम रोशनी और नमी वाले स्थानों पर रहती है। जैसे घरों की दीवारों की दरारों, चूहों के बिल तथा ऐसे मिट्टी के टीले जहां ज्यादा जैविक तत्व और उच्च भूमिगत जल स्तर हो। ऐसे स्थान उनको पनपने में लिए बेहतर माहौल देते हैं। उन्होंने बताया यह मक्खी उड़ने में कमजोर जीव है, जो केवल जमीन से 6 फुट की ऊंचाई तक ही फुदक सकती है। मादा बालू मक्खी ऐसे स्थानों पर अंडे देती है जो छायादार, नम तथा जैविक पदार्थों से परिपूर्ण हो। जिन घरों में बालू मक्खियाँ पाई जाती हैं उन घरों में कालाजार के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
मरीज के खाते में भेजी जाती है क्षतिपूर्ति राशि :
कालाजार से पीड़ित मरीज को 7100 रुपये श्रम क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है। यह राशि नए मरीजों को दी जाती है। साथ ही, प्रशिक्षित आशा के द्वारा मरीजों को चिह्नित करने व नजदीक के पीएचसी तक लाने एवं उनका ठीक होने तक ख्याल रखने पर प्रति मरीज 600 रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। यह राशि भारत सरकार एवं राज्य सरकार की तरफ से दी जाती है। इसमें मरीजों के लिए 6600 रुपये और आशा के लिए 100 रुपये की राशि मुख्यमंत्री कालाजार राहत अभियान के अंतर्गत दी जाती है। वहीं प्रति मरीज एवं आशा को 500 रुपये भारत सरकार की तरफ से दिया जाता है। साथ ही, ग्रामीण चिकत्सकों द्वारा मरीजों के रेफर करने और उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आने की स्थिति में उन्हें 500 रुपए दिए जाते हैं।
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