लोकतंत्र का डंका पीटने वालो ने सामाजिक ढांचे को बर्बाद कर डाला
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, ब्यूरो चीफ कैमूर
- Jun 05, 2025
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संवाददाता श्याम सुंदर पाण्डेय की रिपोर्ट
दुर्गावती(कैमूर)-- भारतीय संविधान व लोकतंत्र से दूर हर काम करने के लिए सरकार ने मन बना लिया है , जिसका परिणाम रहा की गांव और शहर का सामाजिक समरसता आपसी प्रेम और भाईचारा बिल्कुल समाप्त हो गया। गांव में जिसका मन जब चाहे गांव की गलियों में मकान का निर्माण करते समय गांव की गलियों में बढ़कर घर बना लेना शौचालय का तथा घर का नाबदान का मुंह सीधे गली में खोल देना आम बात हो गई। यही नहीं तालाब पोखर आहर पोखरी और रोड ताल तलैया के बड़े-बड़े मेढ़ को अतिक्रमण कर लेना एक परंपरा बन चुकी है। समाज बढ़ते महिलाओं के प्रति अपराध घर से भागना आम बात हो गई जिस पर कोई बोलने वाला नहीं है। लोकतंत्र का कानून कहता है आपको बोलने का अधिकार नहीं है अब कानून फैसला करेगा लेकिन हो रहा है उल्टा।पहले के जमाने में गांव में ऐसे सब मुद्दों पर बैठकर लोग मामले को सुलझा लेते थे जिससे न कही अतिक्रमण होता था न महिलाओं पर अत्याचार न भागने की प्रक्रिया न कोई किसी की जमीन दखल कर सकता था। लेकिन राजनेताओं की सोच ने लोकतंत्र का डंका पीट कर सारे परंपरा को मिटा डाला जिसका परिणाम है कि अब समाज में कहीं किसी का कोई भय नहीं है क्योंकि कानून उसके लिए बना है। जब व्यक्ति कानून की तरह बढ़ता है तो न्यायालय का चक्कर लगाते पदाधिकारियो के यहां दौड़ते दौड़ते बरसों लग जाते हैं फिर भी मामला नहीं सुलझ पाता। अंग्रेजों के शासनकाल में यह सामाजिक परंपरा चल रही जिससे समाज में न अपराध बढ़ रहा था न अतिक्रमण की समस्या थी न आपसी भाईचारा में कहीं कोई दिक्कत सामने आती थी। इसी तरह से राजनेताओं की सोच रही तो आने वाले समय में कोई किसी का नहीं सुनेगा न कोई आज किसी का सुन रहा है। लोकतंत्र के द्वारा बिगाड़े गए सामाजिक समरसता और परंपरा का परिणाम राजनीति में भी लोगों को भोगना पड़ता है क्योंकि न बहुमत होती है न बहुमत की सरकार बनती है। लोकतंत्र में आजादी ही आजादी है जिसका जब मन चाहे अतिक्रमण कर ले महिलाओं पर अत्याचार करले भाग कर घर से शादी ले आम बात हो गई।


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