मड़हा ( तमसा ) हुई पुनः प्रवाहित, कल कल करते बढ़ने लगी आगे, धीरे धीरे

सोहावल, अयोध्या ।। सरकार के अथक प्रयासों से तमसा नदी ( मड़हा ) में जल प्रवाह शुरू हो गया है, गहरीकरण की लम्बी प्रक्रिया के साथ तमसा कल - कल ध्वनि करती हुई बह रही है । वास्तव में ये प्रसन्नता के पल हैं । जिस मड़हा नदी में विगत दस वर्षों में जल देखने को आंखे तरस गई थी आज वही मड़हा बेखौफ बेझिझक मुस्कुराते हुए धीरे - धीरे शर्माते हुए आगे बढ़ रही है । निश्चित तौर पर मुख्यमन्त्री की पहल को आज बल मिला है ।

तमसा मां वही है जिसके तट पर प्रभु श्रीराम ने वनगमन के समय प्रथम रात्रि गयासपुर ( तारुन ) में विश्राम किया था । तमसा मां ने  प्रभु को मातृत्व सुख प्रदान किया था । तमसा मां का उद्गम स्थल जिले के अंतिम पश्चिमी छोर पर स्थित मवई ब्लाक क्षेत्र के लखनीपुर गांव के समीप है । तमसा कभी लोगों के लिए जीवनदायिनी सिद्ध हुआ करती थी । पशु-पक्षी  शीतल जल को पीकर तृप्त होते थे । किसानों के लिए भी जल वरदान साबित हुआ करता था । लेकिन विगत कुछ वर्षों में स्वयं तमसा का जीवन ही संकट में आ गया था पर कुछ समाज सेवियों, नेताओं और अधिकारियों ने तमसा को फिर से एक बार मुस्कराने का अवसर दिया है ।

बताते चलें कि पौराणिक तमसा ( मड़हा ) नदी कभी अवध क्षेत्र की पहचान हुआ करती थी । वन जाते समय श्रीराम, लक्ष्मण व सीता ने अयोध्या के बाहर सर्वप्रथम तमसा नदी के तट पर विश्राम करके इसको धन्य बना दिया था । इसका उल्लेख गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस में ‘प्रथम वास तमसा भयो दूसर सुरसरि तीर’ के माध्यम से किया है । अवध क्षेत्र की प्रमुख नदियों में अपनी पहचान बनाने वाली इस नदी को मड़हा व तमसा के नाम से जाना जाता है । इस नदी का उद्गम स्थल मवई के ग्राम लखनीपुर में माना जाता है । यहां पर एक सरोवर से इसका अभ्युदय हुआ है । तमसा नदी मवई, रुदौली, अमानीगंज, सोहावल, मिल्कीपुर, मसौधा, बीकापुर और तारुन आदि  विकास खंडों से होते हुए फैजाबाद से अम्बेडकरनगर व गोसाईगंज के पास तक प्रवाहित होती है ।

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