भिवंडी के उपजिला अस्पताल में कुपोषण आदिवासी बालिका का उपचार
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Feb 15, 2020
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भिवंडी ।। भिवंडी तालुका के ग्रामीण भागों में कुछ आदिवासी परिवार भुखमरी के कगार पर खड़े हैं वही पर कुछ ईंट भट्टी पर काम करते हुए भुखमरी से लड़कर जीने का प्रयास कर रहे हैं और तो और कुछ शहर में प्रतिदिन भीख मांगकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.ऐसे ही परिवार के बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं. जिसका एक उदाहरण भिवंडी के ग्रामीण भाग से सामने आया हैं. जिससे सरकार द्वारा चलाऐ जा रहे अभियान की पोलकर रख दी हैं।
भिवंडी तालुका के दाभाड में ईंट भट्टी पर काम करने वाले आदिवासी मजदूर परिवार के तीन वर्षीय बालिका भूमिका विलास शनवार कुपोषण की शिकार हो गयी.जिसका उपचार स्वं इंदिरा गांधी उप जिला अस्पताल में चल रहा हैं. पालघर जिला के तालुका डहाणू शिसने गांव निवासी विलास शनवर पिछले एक महीने पूर्व भिवंडी तालुका के दाभाड गांव स्थित नानु कुंभार के ईंट भट्ठी के ट्रैक्टर पर मजदूरी करने के लिए पत्नी सुरेखा, पुत्री भूमिका (3) ,तनुजा (1) के साथ आया हैं.विलास शनवर ईंट भट्ठी पर ही झोपड़ा बनाकर रहता हैं.श्रमजीवी संघटना के कार्यकर्ता आशा भोईर मोर्चा निकालने संबंधी गांव में भ्रमण करने गयी थी. जिसकी मुलाकात आदिवासी महिला सुरेखा से हो गयी. आशा भोईर ने महिला व परिवार के बारे में जानकारी निकाली. तथा उसके झोपड़े का निरीक्षण किया. बीमार समझकर आशा भोईर ने भूमिका को उपचार करवाने के लिए दाभाड स्थित प्राथमिक आरोग्य केंद्र पर ले गयी.जहाँ पर उपचार के दरम्यान भूमिका का वजन मात्र 6 किलो था. वही पर कुपोषण की शिकार हैं इस बार की जानकारी मिली.प्राथमिक उपचार के बाद उसे स्वं इंदिरा गांधी उप जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया.जिसका उपचार वैद्यकीय अधीक्षक डाॅ.अनिल थोरात के मार्गदर्शन में बालरोगतज्ञ व आहारतज्ञ डाॅक्टरों द्वारा किया जा रहा हैं वही पर डाॅ अनिल थोरात ने बताया कि लगातार 14 दिन के उपचार बाद उसके स्वस्थ्य में सुधार होगा ।
भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है. दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है. राजस्थान और मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र ने भारत में जो आंकड़े पाए हैं, वे अंतरराष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज्यादा हैं. संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति को "चिंताजनक" बताया है. भारत में फाइट हंगर फाउंडेशन और एसीएफ इंडिया ने मिल कर "जनरेशनल न्यूट्रिशन प्रोग्राम" की शुरुआत की है।
एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला है. रिपोर्ट में लिखा गया है, "भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है." वहीं महाराष्ट्र में राजमाता जिजाऊ मिशन चलाने वाली वंदना कृष्णा का कहना है कि राज्य सरकार कुपोषण कम करने के लिए कई कदम उठा रही है, पर साथ ही उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि दलित और आदिवासी इलाकों में अभी भी सफलता नहीं मिल पाई है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बच्चों को खाना ना मिलने के साथ साथ, देश में खाने की बर्बादी का ब्योरा भी दिया गया है ।
आज के समय में कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चिंता का विषय बन गया है। यहां तक की विश्व बैंक ने इसकी तुलना ब्लेक डेथ नामक महामारी से की है। जिसने 18 वीं सदीं में यूरोप की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को निगल लिया था. कुपोषण को क्यों इतना महत्वपूर्ण माना जा रहा हैं? विश्व बैंक जैसी संस्थायें क्यों इसके प्रति इतनी चिंतित है? सामान्य रूप में कुपोषण को चिकित्सीय मामला माना जाता है और हममें से अधिकतर सोचते हैं कि यह चिकित्सा का विषय है. वास्तव में कुपोषण बहुत सारे सामाजिक-राजनैतिक कारणों का परिणाम है। जब भूख और गरीबी राजनैतिक एजेडा की प्राथमिकता नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है।
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