
कब तक भूखा रहूंगा साहेब इसलिए पैदल ही गांव जाने दो।, कई दिनों से भुखा हूं सरकार -- मजदूर
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Apr 16, 2020
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भिवंडी।। भिवंडी शहर की दर्दनाक कहानी कल बुधवार यानी 15 अप्रेल रात 11 बजे देखने को मिली.जहाँ मजदूरों की बात सुनकर इंसानियत भी शर्मशार हो गयी. लगभग 150 मजदूर कामतघर, फेना पाडा, गायत्रीनगर,बाबला कंपाउड ,पाईप लाईन आदि क्षेत्रों से पैदल ही अपने मूल गांव इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़े. किन्तु साई बाबा मंदिर के पास नाकाबंदी पर उपस्थित पुलिस वालों ने इन्हें कोई व्यवस्था किये बिना ही वापस भेंज दिया कई मजदूर नाकाबंदी पर उपस्थित पुलिस वालों से विनती करते रहे कि "कब तक भूखा रहूंगा साहेब , खाना बांटने वाले भी भरपेट भोजन नहीं देते है.वही पर खाना देने वाला खाना लेते समय फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डाल देते है.हम भी किसान के बेटे हैं यहाँ आकर मजदूरी करते हैं ऐसा लगता हैं हमलोगों का जमीर मर चुका हैं.इसलिए हमें पैदल ही जाने दो साहब।"
गौरतलब हो इस पावरलूम नगरी में उत्तर प्रदेश ,बिहार ,मध्य प्रदेश आदि राज्यों से मजदूर आकर यहाँ के विभिन्न कंपनियाँ ,गोदामों, पावरलूम कारखानों में दिहाडी मजदूरी करते हैं.झुग्गी झोपड़ियों में रहकर दूसरे के लिए ताज महल बनाते है.ताज महल इस लिए लिखना पड़ रहा हैं कि इनके पसीने के मेहनत से धनाढ्य लोग महलो में रहते है.इन्हें सिर्फ मिलती हैं मजदूरी ? किन्तु जब जब इनके ऊपर मुसीबत आती हैं तो इनका साथ देने वाला कोई नेता उत्तर प्रदेश ,बिहार से नहीं आता हैं.दिल्ली के कुर्सी पर अभी तक दर्जनों प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश, बिहार से इन्ही मजदूरों ने चुनकर दिया हैं. किन्तु सत्ता सुख के भोग विलास में डूबे इन नेताओं ने कभी उत्तर प्रदेश, बिहार के लोगों के लिए कुछ सोचा तक नहीं.जिसके कारण यहाँ के लोगों को दर दर भटकना पड़ता हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार में जब सांसद ,विधायकी का चुनाव आता हैं तो यहाँ के नेता को मुंबई में दिहाडी मजदूरी करने वालें मजदूरों की याद आती हैं.इन्ही नेताओं द्वारा वहाँ का चुनाव प्रचार छोड़ कर मुंबई के झुग्गी झोपड़ियों में इन्हें खोजा जाता हैं. इन्हें गांव आकर वोट करने के लिए रेल्वे का रिजर्वेशन टिकट भी करवा कर दिया जाता हैं.एक -एक वोटर की तलाश करते ऐसे नेताओं को चुनाव के समय मुंबई के झुग्गी झोपड़ियों में देखा जा सकता हैं.तब इनको फलनवा का नाम व गांव सब पता रहता हैं किन्तु जब मुसीबत आती हैं तो वही नेता इनकी सुध लेने को भी नहीं सोचता हैं.आज ऐसे संकटकाल में इन मजदूरों की मदत करना अत्यन्त आवश्यक हैं।
लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाए जाने के बाद शहर में प्रवासी मजदूर सड़कों के रास्ते पैदल ही अपने गृहराज्य जाने की कोशिश कर रहे है आखिर हर बार हर विपत्ति गरीबों और मजदूरों पर ही क्यों टूटती है ? उनकी स्थिति को ध्यान में रखकर फैसले क्यों नहीं लिए जाते? उन्हें भगवान भरोसे क्यों छोड़ दिया जाता है? लॉकडाउन के दौरान रेलवे टिकटों की बुकिंग क्यों जारी थी ? स्पेशल ट्रेनों का इंतजाम क्यों नहीं किया गया? मजदूरों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं, स्टॉक का राशन खत्म हो रहा है, वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. ऐसे में वो घर गांव जाना चाहते हैं. इसकी व्यवस्था होनी चाहिए थी. प्लानिंग के साथ इनकी मदद की व्यवस्था की जा सकती है.मजदूर इस देश की रीढ़ की हड्डी हैं.सरकार जब अमीरों को जहाज से विदेशों से ला सकती है तो गरीबों को ट्रेनों से क्यों नहीं लाया जा सकता है? ऐसे बहुत से सवाल उठते हैं किन्तु इन्हें उठाने वाला स्वयं घोषित छुटभैया सफेद पोश नेता शहर के कामतघर, न्हावी पाडा आदि क्षेत्रों में रहते है. इनकी मदत करने के लिए क्यों आगे नहीं आते है.क्या सिर्फ कुछ पत्रकारों पर कीचड़ उछालने के लिए सिर्फ बोगस यूट्यूब चैनलों पर छाये रहते है। फिलहाल रात बहुत हो जाने के कारण वो मजदूर कहा गये कौन खाना की व्यवस्था किया इसकी कोई जानकारी नहीं है ।
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