असली पत्रकार हुए फ्लॉप, फर्जी-अनपढ़ व फारवर्ड पत्रकार बनें लल्लन टॉप

◼ जुआ पत्रकार के नाम पर नकलची पत्रकरों का गैंग सक्रिय


भिवंडी।। शहर में लगातार पत्रकारिता का स्तर गिरता जा रहा है. इस क्षेत्र में अब अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवा भी छोटे-छोटे दैनिक अखबारों के रिपोर्टर बनकर अखबारों में बाई नेम खबरें छपवाकर कर पत्रकार बनें हुए है. हलांकि इनको लिखने व पढ़ने का ज्ञान होता नहीं. इन नकलची पत्रकारों द्वारा न्युज पोर्टलों की खबरें चोरी कर अथवा दूसरे की लिखी खबरें फारवर्ड कर अपने अखबारों में छपवा देते है। इसके बाद पूरे दिन अवैध धंधे से हफ्ता वसूली व चाय टपरियों पर गप्पे मारते देखे जा सकते है।
       
आखिरकार दूसरों की खबरों को फारवर्ड अथवा चोरी कर कब तक अपनी दुकानें चलाते रहेंगे? ऐसे लोगों को समाज में बेनकाब करना आज जरूरी है। किसी घटना या पत्रकार परिषद के समय शासन प्रशासन के अधिकारियों तथा राजनेताओं के सामने ऐसे पत्रकार सबसे आगे के पंक्ति में बैठे देखे जाते है।
         
आश्चर्य की बात है यूट्यूब पर फर्जी न्युज चलाने वाले कुछ अनपढ़ व बेरोजगार युवाओं ने स्वयं को संपादक घोषित कर लिया है. तथा इसी फर्जी यूट्यूब न्युज चैनलों के 50 से 60 अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को पत्रकार बनाकर फर्जी प्रेस कार्ड जारी कर देते है. इसके आलावा आपराधिक किस्म के लोगों से बकायदा पांच से दस हजार रुपये लेकर प्रेस कार्ड देने का गोरखधंधा इन पत्रकारों द्वारा किया जा रहा है. इन आपराधिक किस्म के लोग अपने अपने वाहनों पर प्रेस अथवा पत्रकार लिखवाकर शहर में गुटखा, देशी शराब, गाजा आदि जैसे प्रतिबंधित सामानों की बिक्री या डिलीवरी करने का गोरखधंधा शुरू कर देते है. जिसके कारण शहर में क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। ट्रैफिक पुलिस इन प्रेस लिखी गाड़ियों की चेकिंग नहीं करती. जिसके वजह से इनका मनोबल बढ़ता जा रहा है. नाकाबंदी के दरम्यान ऐसे फर्जी पत्रकार पुलिस कर्मी से उलझते हुए देखे जा सकते है।
       
इन अनपढ़ पत्रकारों ने एक फारवर्ड गैंग बनाकर रखा हुआ है. जिसमें एक व्यक्ति न्युज छपवाने तथा लिखने का बाकायदा ठेका लेता है। तथा छोटे -छोटे दैनिक अखबारों में अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को रिपोर्टर बनवाकर एक ही खबर को नकल कर छपवा दिया जाता है। यही नहीं कुछ दैनिक अखबारों ने वकायदे शहर में एजेंट नियुक्त किया हैं। जो सिर्फ अनपढ़, गवार, बेरोजगार युवाओं को पत्रकार बनाकर उनसे वसूली करवाने का काम करता है. एक ही दैनिक अखबार के पांच से सात रिपोर्टर शहर में देखे जा सकते है. ताज्जुब की बात है कि इन पांच से सात रिपोर्टरों को पढ़ने लिखने तक ज्ञान नहीं होता है। हिंदी के तो कुछ ऐसे पत्रकार हैं। जिनकी कई पीढ़ियां हिंदी लिखना नहीं जानती। लेकिन ऐसे पत्रकार भी परिषदों में सबसे आगे बैठे नजर आते है। इन फर्जी पत्रकारों की वजह से मीडिया का स्तर गिरता जा रहा है। 
     
यूट्यूब पर न्युज चलाने वाले सोसल मीडिया के पत्रकारों ने शहर में हजारों लोगों को प्रेस कार्ड जारी कर रखा है। इसके साथ ही यूट्यूब पर बने फर्जी न्युज संपादको ने स्वयं प्रेस कार्ड बनाकर स्वयं हस्ताक्षर कर अपने आप को संपादक घोषित कर लिया है। इनकी जांच करना नितांत आवश्यकता है. नहीं तो एक दिन शहर का शांति व्यवस्था खराब होने से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे फर्जी पत्रकारों का बस एक ही काम होता है, लोगों से ठगी करना तथा आम लोगों व प्रशासन में पत्रकार के नाम पर अपनी हनक कायम करना।                   
       
समाचार पत्रों के सीनियर पत्रकारों कि तरह व्यवहार बनाकर सरकारी कर्मचारियों, प्राइवेट प्रतिष्ठानों के मालिकों व सीधी साधी आम जनता में प्रेस का रौब दिखाकर सिर्फ उनसे ठगी व उगाही कर मीडिया की छवि खराब और बदनाम करना होता है।
       
पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ अपराधिक छवि वाले व्यक्तियों ने भी मीडिया को अपना कवच बना रखा है और अपराध को बढ़ावा दे रहे है। छोटे छोटे अखबारों के संपादक सहित यूट्यूब पर बने संपादक व फर्जी तथा फारवर्ड गैंग के पत्रकारों ने राशन दुकानदारों, मटका जुआर अड्डे चलाने वाले लोगों को यहाँ तक शौचालय में पानी मारने वाले व्यक्तियों को भी प्रेस कार्ड बनाकर पत्रकार बना दिया है।‌अगर ऐसे पत्रकारों पर अंकुश नही लगाया गया तो पत्रकारिता के गिरते स्तर को नहीं बचाया जा सकता है।

रिपोर्टर

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