पूर्वांचल मे आखिर क्या है❓जो पीएम को डेढ़ महीने मे छे बार दौरा करना पड़ रहा है।❓

मुंबई।। काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के लिए दो दिनों का वक़्त निकाला। पिछले दो महीनों में प्रधानमंत्री का पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) का यह छठा दौरा है। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक बड़ा केंद्र रहा है। उस नज़रिए से कॉरिडोर के शिलान्यास और लोकार्पण दोनों ही भाजपा के शासनकाल में होने को योगी सरकार एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है।हालांकि प्रधानमंत्री जिस तरह से बार-बार पूर्वांचल के दौरे कर रहे हैं, वो इस इलाक़े की लगातार बढ़ती राजनीतिक अहमियत को दर्शाता है। वैसे प्रदेश के चार मुख्य राजनीतिक इलाक़ों (पूर्वांचल के अलावा बुंदेलखंड, अवध और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में सीटों के लिहाज से पूर्वांचल काफ़ी अहम है।

पीएम मोदी के पूर्वांचल के ताबड़तोड़ छहदौरे- पिछले दो महीनों में बीजेपी ने पूर्वांचल में पूरी प्रशासनिक और राजनीतिक ताक़त झोंक दी है। 2022 के विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लगने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इस बीच प्रदेश बीजेपी अपनी तमाम बड़ी परियोजनाओं का लोकार्पण ख़ुद पीएम नरेंद्र मोदी से करवा रही है। ऐसी परियोजनाओं की फ़ेहरिश्त काफ़ी लंबी है।

सबसे पहले, प्रधानमंत्री ने 20 अक्टूबर को गोरखपुर से सटे कुशीनगर ज़िले में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का लोकार्पण किया। उसके बाद 25 अक्टूबर को उन्होंने पूर्वांचल के नौ ज़िलों में मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया।

पीएम मोदी ने फिर 16 नवंबर को सुल्तानपुर में लखनऊ से गाज़ीपुर को जोड़ने वाले 341 किलोमीटर लंबे और 22,500 करोड़ की लागत से बने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन किया। फिर उन्होंने 7 दिसंबर को 9,600 करोड़ रुपये की कई परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इसमें गोरखपुर के एम्स के अलावा एक बड़ा फ़र्टिलाइज़र प्लांट भी शामिल है।

11 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोंडा, बलरामपुर और बहराइच ज़िलों में 9,600 करोड़ रुपये की लागत से बने सरयू कनाल प्रोजेक्ट का लोकार्पण किया, और सबसे ताज़ा कार्यक्रम सोमवार का रहा, जब नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में 339 करोड़ रुपये से बनाये गए काशी कॉरिडोर का लोकार्पण करते हुए इस मौक़े को एक त्योहार के रूप में मनाया।

तो क्या पूर्वांचल में कमज़ोर प्रदर्शन योगी-मोदी की राजनीतिक शख़्सियत के लिए हानिकारक हो सकता है?- जानकारों का माने तो  "मोदी और योगी दोनों की जो निजी छवि है, उस छवि को बरक़रार रखना एक बड़ा सवाल है। आपको याद होगा कि 2018 के गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री रहते बीजेपी जब वो सीट हार गयी थी, तब जगह-जगह उनकी आलोचना होती थी और उन पर सवाल खड़े होने लगे थे। इसलिए वे किसी भी स्थिति में इस दांव को गंवाने देना नहीं चाहते।"

क्या है पूर्वांचल का चुनावी गणित?-उत्तर प्रदेश के चुनावी विश्लेषण और सर्वे में पूर्वांचल के ज़िलों और सीटों की संख्या अक्सर अलग-अलग मिलती है।

जुलाई में ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश के लगभग 26 ज़िले पूर्वांचल में आते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां की 156 में से 106 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी।

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2019 के लोकसभा चुनावों में पूर्वांचल की 30 में से 21 सीटों पर बीजेपी के सांसद चुने गए। साथ ही पार्टी के सहयोगी अपना दल के भी दो सांसद चुने गए। 2022 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की कोशिश होगी कि वो किसी भी तरह से इस इलाक़े में अपना वर्चस्व क़ायम रखे।

हाल ही में, एबीपी न्यूज़ और सी वोटर के चुनावी सर्वे में पूर्वांचल की सीटों का आकलन किया गया। इसमें संकेत दिए गए कि मौजूदा हालात में पूर्वांचल में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 40 फ़ीसदी, सपा और उसके सहयोगियों को 34 फ़ीसदी और बसपा को 17 फ़ीसदी वोट मिलने का अनुमान है।

इस सर्वे में पूर्वांचल में विधानसभा सीटों की संख्या 130 बतायी गई। इस लिहाज़ से इस इलाक़े को पश्चिमी उत्तर प्रदेश (136 सीट) के बाद दूसरा सबसे बड़ा बताया गया।

सर्वे के अनुसार, इस बार पूर्वांचल में बीजेपी को 61-65, सपा को 51-55 और बसपा को 4-8 सीटें दी गई हैं। इसी सर्वे में यह भी बताया गया कि जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैस बीजेपी और सपा के बीच फ़ासला कम हो रहा है।ज़ाहिर है इन रुझानों से बीजेपी ख़ेमे में ख़तरे की घंटियां बजने लग गई होंगी।

क्या सपा के चलते बैकफ़ुट पर हैबीजेपी?

अखिलेश यादव ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, अपना दल (कृष्णा पटेल), जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन कर पूर्वांचल में अपने गठबंधन को मज़बूती देने की कोशिश की है।

रजनैतिक जानकर कहते है।  "अपने आप को सीएम पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे अखिलेश यादव ने एक को छोड़कर अब तक छोटे-छोटे जितने भी जातिगत गठबंधन किए हैं, वे सभी पूर्वांचल में है। एक जो अलग है, वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी का गठबंधन है।''' 'ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का बीजेपी से अलग होकर सपा के साथ चले जाना बीजेपी के लिए बड़ा झटका है। चार विधायकों वाली इस पार्टी पर भाजपा की निर्भरता थी। पूर्वांचल में बीजेपी को अब भी राजभर, चौहान, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्या और सैनी जैसी जातियों के वोटों की ज़रूरत है। यदि कोई बड़ी पार्टी चार-पांच छोटे दलों के साथ गठबंधन करती है, तो कभी-कभी उसमें एक बड़ा इलाक़ा आ जाता है। इससे माहौल बनाया जाता है।"

हाल में सपा से पूर्वांचल के कई नेता जुड़े हैं। रविवार को बसपा में दो दशक से रहे गोरखपुर के ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी, अपने विधायक पुत्र विनय शंकर तिवारी और ख़लीलाबाद से बीजेपी के विधायक जय चौबे के साथ सपा में शामिल हो गए।

बसपा के कद्दावर नेता और कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा और अकबरपुर से बसपा विधायक राम अचल राजभर ने अखिलेश यादव की मौजूदगी में अकबरपुर में जनसभा कर अपने समर्थकों के साथ सपा की सदस्यता ले ली।

टिकट की उम्मीद पाले ये स्थानीय नेता अपनी बिरादरी के वोट सपा को दिलवाने की कोशिश करेंगे। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के भव्य लोकार्पण के ठीक बाद अखिलेश यादव का चुनावी रथ इस एक्सप्रेसवे से गुज़रा। उन्हें देखने और उनका भाषण सुनने के लिए लोग देर रात तक सड़कों पर डटे रहे। उसके बाद चर्चा होने लगी कि प्रधानमंत्री के इतने बड़े कार्यक्रम के बावजूद अखिलेश ''अच्छी भीड़'' जुटा रहे हैं।


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