गढ़ रहा हूँ राज कोई -- डॉ एम डी सिंह

गढ़ रहा हूँ राज कोई जो मुझे पता नहीं
पढ़ रहा हूं आज कोई जो मुझे पता नहीं

कल मिला जो हाशिए पर आज खड़ा सामने
मढ़ रहा हूं ताज कोई जो मुझे पता नाहीं

वह हमारे पास है मैं सामने हूं निकट
बज रहा है साज कोई जो मुझे पता नहीं

फट पड़े बादलों सा कोई सब उड़ेल गया
गिर पड़ा है गाज कोई जो मुझे पता नहीं

सर से झुक कर घूंघट ने होठों को छू लिया
दिख रहा है लाज कोई जो मुझे पता नहीं

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