आखिरकार ! प्रतिबंधित मांगूर मछली की बिक्री पर रोक क्यों नहीं ?

भिवंडी।। सरकार ने वर्ष 2000 में ही मांगूर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी। लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री शहर के विभिन्न क्षेत्रो में जारी है। मार्केट विभाग द्वारा इसकी जानकारी होने के बाद भी कार्रवाई नहीं की जाती है। पांच माह पूर्व तीन बत्ती परिसर में एक मछली विक्रेता के खिलाफ मार्केट विभाग के अधिकारियों ने कार्रवाई कर लगभग 200 किलो प्रतिबंधित मांगूर मछली जब्त किया था। जिसके कारण लगभग एक सप्ताह तक मछली की बिक्री बंद रही। किन्तु एक सप्ताह बाद पुनः पहले की भांति मांगूर मछली की बिक्री शुरू हो गई।

  गौरतलब मांगूर मछली के सेवन से घातक बीमारी होती है। इसे कैंसर का वाहक भी कहा जाता है। यही नहीं यह मछली मांसाहारी होने के नाते इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुँचती है। एनजीटी ( राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण) ने वर्ष 2019 में इस संबंध में निर्देश भी जारी किया था। जिसमें यह कहा गया था कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर अपने अपने क्षेत्रों में निरीक्षण कर इस मछली का पालन करने वाले किसानों के तालाब से मछलियाँ नष्ट्र कर दें। यही नहीं उसका खर्च भी उसी किसान से लिया जाऐ‌। 

 भिवंडी शहर प्रवासी मजदूरों का शहर है। यहाँ पर उत्तर प्रदेश, उडीसा, कलकत्ता,बिहार, मध्य प्रदेश आदि अन्य राज्यों से मजदूर आकर दिहाडी मजदूरी करते है। मांसाहारी होटल व बिस्सी वाले सस्ती होने के नाते इस मछली को मजदूरों को खिलाते है। जिसके कारण मजदूरों में कैंसर जैसी घातक बीमारी फैल जाती है। कैंसर रोग का इलाज महंगा होने के कारण कैंसर गस्त मजदूरों की अकाल मौत हो जाती है। शहर के भिवंडी कोर्ट के सामने, चौहान कालोनी, तीनबत्ती और अंजूर फाटा में ऐसे प्रतिबंधित मछलियों को बड़े बड़े प्लास्टिक डिब्बे में पालन कर होलसेल बिक्री की जाती है। इन्हीं होलसेल दुकानो से छोटे मछली विक्रेता व होटल तथा बिस्सी वाले खरीद कर ले जाते हैं। हालांकि पालिका के मार्केट विभाग सहित अन्य विभागों व पुलिस प्रशासन को इसकी जानकारी होने के बावजूद इन होल सेल व्यापारियों पर कार्रवाई नहीं होना आश्चर्य का विषय बना हुआ है।

रिपोर्टर

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