पत्रकार बनाम फर्जी पत्रकार

भिवंडी।। बहुत ही महीन लाइन है पत्रकार और फ़र्जी पत्रकार के बीच .. एक वह पत्रकार जो बिन पगारी दिन भर खबरों को इकठ्ठा कर, जन समस्याओं को शासन और शासन की बात जन जन पहुँचाने के बाद थकाहारा अपने घर जाता है और घर के चूल्हे का इंतजाम ना होने के बावजूद दूसरे दिन फिर अपने कर्तव्य पर हाजिर हो जाता है।

दूसरी ओर ऐसे लोग भी है जो सिर्फ पैसों के लिए पे न्युज का विडियो / खबरें बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर पत्रकार बने है। इनके पास कोई पत्रकार का तमगा ना होने बावजूद ऐसे लोग स्वयं प्रेस का आई डी कार्ड बनाकर स्वयं हस्ताक्षर कर अन्य 100 लोगों को वकायदे पैसे लेकर पत्रकार बनाकर गोरखधंधा करते है। हालांकि ऐसे सोशल मीडिया यूट्यूब के स्वयं घोषित संपादक/ एडिटरों  को अपने शहर का नाम अथवा पत्रकार शब्द लिखने नही आता। किन्तु वाकपटुता और नकल में मास्टर और पीएचडी की डिग्री होने के कारण सत्य को असत्य और असत्य को सत्य बताकर तीन से चार मिनट का वीडियो बनाया और वायरल कर दिया। कोई आपत्ति जताई यो यूट्यूब से विडियो उड़ा दिया। अगर किसी व्यक्ति अथवा राजनेता अपने विरोधी को आवारा कुत्ता बोला तो ऐसे स्वयं घोषित पत्रकार उसके विरोधी व्यक्ति अथवा राजनेता से उससे बड़ा आवारा कुत्ता बोलवा कर दोनों तरफ से मोठी कमाई कर लेता है जिसके कारण दिन पर दिन इनकी तरक्की में इजाफा होता रहा है। जिनकी दुकान अपनी शहर में नहीं चली तो वो दूसरे शहर में जाकर अपनी दुकान खोल लिया।

कुछ दिनों पहले दो दर्जन स्वयं घोषित पत्रकार एक कार्यक्रम में पहुँच गये‌। वहां तीन से चार घंटे की शुटिग करने के बाद कुछ के मोबाइल की मेमरी फुल हो गई तो कुछ के मोबाइल की बैटरी डेड हो गई। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो आयोजक ने एक को बुलाकर 2000 रूपये दे दिया और बोला कि आपस में बांट लो। तीन से चार घंटे की शूटिंग करने बाद इनके हिस्सा में केवल 70 - 80 रूपये आया। उस समय भी यही लोगों ने इस कार्यक्रम में आऐ अपने साथियों को बिना बुलाऐ आने का आरोप लगाया था। इस कार्यक्रम में पहुँचे ऐसे लोगों को पत्रकारिता से दूर दूर तक संबंध नहीं था। किन्तु नाश्ता व नोट की चक्कर में तीन से चार घंटे के लिए पत्रकार बन गये।
अब दिवाली की बात कर लेते है शहर में लगभग दो से तीन दर्जन से ज्यादा यूट्यूबर है। पत्रकारों के विजिटिंग कार्ड की भांति ऐसे यूट्यूबर अपने विजिटिंग कार्ड पर मोटे मोटे अंग्रेजी के अक्षरों में PRESS लिखवा लिया है यही नहीं अपने यूट्यूब चैनल को NEWS का नाम भी दे दिया है। उसका व्यवसाय बताकर कर औद्योगिक आधार कार्ड भी बनवा लिया है कुछ तो टी वी सीरियल व पिक्चर बनाने वाले संस्थानों से अपने टी वी सीरियल व पिक्चर को NEWS का नाम देकर रजिस्टर्ड करवा लिया है। फिर इनका खेल शुरू हो जाता है शासन, प्रशासन के अधिकारियों के पास अपना विजिटिंग कार्ड देकर अपने आपको पत्रकार बताकर उनका काले चिट्ठे का विडियो बनाकर न्युज दिखा देने की धमकी देकर दिवाली गिफ्ट देने की मांग की जाती है। अधिकारी भी इनको पत्रकार मानकर इनके विजिटिंग कार्ड की संख्या सैकड़ों में देखने के बाद दिवाली के तीन पहले और दिवाली बीत जाने के तीन दिन बाद तक अपने कार्यालय से नदारद रहता है ऐसे लोगों के कारण शासकीय कामों में तो बाध्या उत्पन्न होता ही है। नागरिकों के मूलभूत काम भी पूरी तरह से ठप्प हो जाते है। जिसे विश्वास नहीं तो अभी एक सप्ताह पहले ही दिवाली बिती है, कार्यालयों के कचरा कुंडी में ऐसे सैकड़ों विजिटिंग कार्ड बिखरे पड़े मिलेंगे।

…. शपथ ईमानदारी की खाते हैं ….पर खाते कुछ और है … बदनाम पूरे विभाग को करते है …. खैर बात पत्रकारों की करें तो गौर करने वाली बात है कि प्रजातंत्र के जो खम्बे है कार्यपालिका , न्यायपालिका ,विधायिका और पत्रकारिता …. इसमें सबसे कमजोर ही पत्रकारिता का खंबा है जिस पे चाहे जब कोई भी टांग ऊंची कर लेता है….  क्योंकि इसे ना तो कोई अधिकार मिले हैं और ना ही मिलने की उम्मीद…पैसे की तो बात ही छोड़ दो ….. हां यूज सब करते है….. चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के जज को पत्रकारों की जरूरत पड़ती है … अब नेताओं को ही देख लो जब तक मन की हुई तो ठीक है। वरना गोदी मीडिया चिल्लाने लगते है  ….. अपने कर्मों का ठीकरा मीडिया के माथे तुरंत फोड़ देते है।

……. एक सवाल यह भी है की पत्रकार ब्लैकमेल करते हैं …. करते होंगे …लेकिन ऐसा क्या होता है कि वह लोग ब्लैकमेल होते है ….. यह सवाल तो उनसे भी पूछा जाना चाहिए कि आपने क्या ऐसे काले कर्म किए है जो पत्रकार आप को ब्लैकमेल कर रहे है …पत्रकारिता की आड़ में ब्लैक मेलिंग और पैसा कमाने की बात हो रही है। प्रतिष्ठित पत्रकारों की गाडियों पर उंगली उठाई जा रही है ब्लैक मेलर के ट्रकों व कारों पर नही। जो कलम की ताकत दिखाकर अपने ट्रकों को कंपनियों में लगवाकर रखा हुआ है। हां उसके पास लिखने की कला है। उनके लिखने से ही उनके अन्य साथियों के घरों में चूल्हे जल जाते है। 

…. क्या छोटा क्या बड़ा …. क्या  नौकर … क्या मालिक …कुल मिलाकर पत्रकारिता से गंदगी साफ कर रहे है तो पूरी तरह से हो .. एक चिंता यह भी है कि इस मुहिम की आड़ में असल पत्रकार निशाने पर आए तो आने वाली पीढ़ी खबरों से दूर रहकर नेताओं के घरों के बाहर खड़े रहने में ही अपनी पूरी जीवन बिता देगी …ना कोई खोजी पत्रकारिता करेगा और ना ही कोई सरकार की आलोचना कर पायेगा…….पत्रकार नाम का यह प्राणी इस पृथ्वी पर ढूंढे नहीं मिलेगा …. निश्चित तौर से प्रेस क्लब इस अभियान से पत्रकारिता की गंदगी साफ करना चाहता है तो इसमें गलत क्या है।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट