कविता :धुआँ

धुआँ लकड़ी का हो या फिर यादों का

आंखों के मुकद्दर में तो दोनों तरफ ही जलना है

इस धुएं सा ही

क्या यादे भी तेरी ओझल हो जाएंगी

शायद हां...

शायद नहीं ....।


और इन यादों में बसी तेरी तस्वीर ...

धुएं के साथ साथ-साथ मिट जाना ही तो है ये जिंदगी  ।

धुआँ नजर आता है जलने के बाद

तड़प नजर आती है बिछड़ने के बाद

अफसोस रह जाता है वक्त गुजर जाने के बाद

पर यादें मिट पाती हैं क्या मर जाने के बाद?

शायद हां...

शायद नहीं...।


 नसु 'एंजेल' महाराष्ट्र

रिपोर्टर

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