भिवंडी के वाराला झील का पानी प्रदूषित पालिका प्रशासन नहीं कर रही है उपाय

भिवंडी।। शहर की प्राचीन झील के नाम से मशहूर वाराला झील का पानी बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो चुका है। वही पर मनपा प्रशासन के सामने मूर्ति विसर्जन,निर्माल्य विसर्जन,आसपास के बस्ती इलाकों से ड्रेनेज पानी की निकासी को रोकना बड़ी चुनौती है। कामतघर गांव के लगभग 62 वर्ग एकड़ क्षेत्र में फैले यह वाराला झील अत्यंत प्राचीन है। इस झील के किनारे वाराला देवी का मंदिर है। जिसके कारण इस झील का नाम वाराला झील पड़ा है। इस झील से पुराने भिवंडी शहर को दो एमएलटी पानी की आपूर्ति की जाती थी किन्तु वर्तमान में इस झील से रोजाना 5 एमएल पानी, पीने के लिए उपयोग किया जा रहा है।

वाराला झील शहर का एक प्रसिद्ध पर्यटन केन्द्र बन चुका है। वर्ष 2004 के आसपास पालिका प्रशासन ने इस पर 17 करोड़ रुपये खर्च किया और झील के चारों ओर एक पार्क विकसित किया तथा तीन विसर्जन घाटों का निर्माण करवाया लेकिन वर्तमान में ये तीनों विसर्जन घाट खराब स्थिति में है इन विसर्जन घाटों का पानी झील के पानी में मिल जाने से पानी प्रदूषित हो रहा है। झील के पानी पर हमेशा हरा-भरा तवांग तैरता हुआ नजर आता है। आयुक्त बंगले की जल निकासी तथा फेने गांव के सीवरेज का पानी सीधे झील में छोड़ जा रहा है। इसके कारण झील का प्रदूषण स्तर बढ़ गया है। कुछ दिनों पहले इस झील में मरी हुई मछलियों का मामला उजागर हुआ था। जिसके कारण स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता साईनाथ पवार ने झील के पानी को परीक्षण के लिए एक निजी प्रयोगशाला में भेजा था जिसका रिपोर्ट में यह कहा गया है कि झील पानी पीने योग नहीं है। इस निजी प्रयोगशाला की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। और अब शहरवासियों के बीच झील के पानी को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है।

सांई नाथ पवार ने बताया कि जब हमने झील के पानी के नमूने लेकर एक निजी प्रयोगशाला में परीक्षण कराया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि यह पानी पीने के लिए योग्य नहीं है। झील में सीधे जा रहे नाले का पानी को रोकने की तत्काल आवश्यकता है।  इसके साथ उन्होंने कहा कि नागरिकों को भी झील के पानी की शुद्धता बनाए रखना चाहिए और इस पानी में अपने कपड़े न धोकर पानी को जल प्रदूषण से बचाऐ।प्रशासन द्वारा इस झील को लेकर तथा झील के चारों ओर जल निकासी की पूरी व्यवस्था करना जरूरी है अन्यथा भविष्य में यह झील जल प्रदूषण के कारण एक पोखर बनकर रह जाएगा।

 जल आपूर्ति विभाग के संदीप पटनावर ने कहा कि पालिका प्रशासन झील के पानी का उपयोग भिवंडी शहर के पुराने हिस्से में पीने के लिए करता है। शुद्ध पानी के नमूनों का प्रतिदिन परीक्षण किया जाता है और रिपोर्ट कहती है कि यह पीने के लिए उपयुक्त है। अमृत सरोवर योजना अंर्तगत केन्द्र व राज्य सरकार के पास 53 करोड़ रूपये का एक विकास योजना भेजा गया है। जिसमें 20 करोड़ की निधि से झील से कचरा निकालने बाकी शेष राशि में विसर्जन घाट, उद्यान, जॉगिंग पार्क, झील के चारों ओर सुरक्षात्मक दीवार, सीवरों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण शामिल है। संदीप पटनावर ने कहा झील के पानी में जल प्रदूषण रोकने के लिए उस स्थान पर रोक लगाना जरूरी है जहां से सीवेज का पानी झील में आ रहा है। साथ ही बताया कि दिन में एक चौकीदार इस क्षेत्र पर नजर रख रहा है ताकि कोई झील में कूड़ा-कचरा न फेंके और न ही कपड़े धो सके। 

 झील की सुरक्षा राम भरोसे :

झील की सुरक्षा के लिए पालिका की कोई व्यवस्था न होने से कई बार इस झील में कपड़े धोने के लिए भीड़ लग जाती है। झील में बड़ी मात्रा में निर्माल्य डाला जाता है। लेकिन कई बार रात के समय इस झील के किनारे पार्टियों में बैठने वाले लोग बोतलें और रैपर फेंक देते हैं और झील क्षेत्र को प्रदूषित कर रहे है। इसके लिए यह तो तय है कि झील के पानी को प्रदूषित करने वालों लोगों को रोकने की जिम्मेदारी नागरिकों की भी है।

रिपोर्टर

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