
उच्च न्यायालय के सोमोटो के बाद जागा भिवंडी पालिका प्रशासन
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Dec 22, 2023
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मोती कारखाना मालिकों को तीन दिन का अल्टीमेटम
पर्यावरण विभाग के नियंत्रण अधिकारी ने जारी किया नोटिस
भिवंडी।। भिवंडी शहर व आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में पॉवर लूम के साथ साथ सैकड़ों की संख्या में प्लास्टिक के दानों से मोती बनाने का उद्योग संचालित है। महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के उप क्षेत्रीय कार्यालय ( कल्याण) विभाग द्वारा मोती कारखानों पर प्रतिबंध लगाया है तथा इस संबंध में मनपा को रिपोर्ट भी भेजा है। इस तरह के कारखानों को लाइसेंस नहीं देने के लिए सुझाव दिया है। रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक से बने मोती को रंगने के लिए रसायनिक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के लिए हानिकारक है। साथ ही इसमें विस्फोटक पदार्थ भी होते हैं। जिसके कारण आग लगने की संभवनाएं ज्यादा रहती है। सल्फर भी पाया जाता है। कई बार कारखाने में आग लगने से जानमाल का नुकसान भी हुआ है। एक कारखाने में आग लगने से कारखाना मालिक सहित मजदूर जलकर मौत हो गई थी। बिना अनुमति के चलने वाले मोती कारखाने प्रदूषण तो फैलाते है साथ ही आग लगने की कई घटनाएं सामने आ चुकी है।
भिवंडी के मोती कारखानों को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने सख्त रवैया अपनाते हुए सोमोटो क्रमांक -7992/12/12/2023 फाइल कर स्वयं संज्ञान लिया है। वही पर उप प्रादेशिक अधिकारी ने 20 दिसंबर को नोटिस जारी कर मोती कारखानों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए निर्देश जारी किया है। भिवंडी पालिका के आयुक्त अजय वैद्य के आदेशानुसार पर्यावरण विभाग नियंत्रण अधिकारी सुदाम जाधव ने मोती कारखाना मालिकों को पालिका का आवश्यक परवाना और प्रदूषण रोकने के लिए किये गये उपाय योजना का खुलासा करने हेतु नोटिस जारी किया है इसके साथ चेतावनी भी जारी की है कि तीन दिन के भीतर खुलासा ना करने पर मोती कारखाना मालिकों के विरूद्ध पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 नुसार वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण ( प्रतिबंध व नियंत्रण) व महाराष्ट्र महानगर पालिका अधिनियम 376(अ), सार्वजनिक उपद्रव अंर्तगत कार्रवाई की जायेगी।
प्लास्टिक दानों और पाउडर से मशीन द्वारा मोती के आकार का मणि बनाया जाता है। इस मणि को लोहे के फ्रेम में रंगा जाता है। इन दोनों प्रक्रिया में हानिकारक और बदबूदार गैस निकलती है। बाद में इसी फ्रेम को सुनसान जगह पर ले जाकर जला दिया जाता है। जिससे हवा में प्रदूषण फैलता है। यही नहीं कारखानों में मजदूर भी अनेक बीमारियों के शिकार होते है। आवासीय क्षेत्र में कारखाना होने से इसका असर नागरिकों पर भी पड़ता है। इस संबंध में लोकप्रतिनिधि व नागरिकों को अनेक शिकायतें मिली थी। जिसके फलस्वरूप उच्च न्यायालय ने स्वयं सोमोटों दाखिल कर मोती कारखानों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आदेश दिया है।
भिवंडी कल्याण रोड़ के नवी बस्ती, शास्त्रीनगर, गैबीनगर, भारत कंपाउड, खान कंपाउड, नारायण कंपाउड, बाबला कंपाउड, सुभाष नगर, रावजीनगर, खदान रोड़, फुलेनगर, पद्मानगर, शांतिनगर, बिलाल नगर, आज़ाद नगर, नागांव, नालापार अजंता कंपाउड, नारपोली, सहित कई अन्य क्षेत्रों में प्लास्टिक दानों से मोती बनाने के कारखाने संचालित है। मोती बनाने का यह कारोबार मनपा सीमा से लगे ग्रामीण इलाकों में भी फैला हुआ है।
पिछले 20-25 वर्षों में मोती उद्योग मुंबई के प्रमुख बाजार के रूप से सामने आया है। महाराष्ट्र के साथ ही पूरे भारत में मोती यहां से डिस्ट्रिब्यूट किया जाता है। डिमांड बढ़ने से सैकड़ों मोती कारखाने केवल भिवंडी में संचालित है। व्यापारियों के करोड़ों रूपये का निवेश किया है। ग्रामीण इलाकों और शहर में रहने वाली गरीब घर की लड़कियां और महिलाएं इस मोती को आभूषण के रूप में पहनती है क्योंकि समुद्री मोती इनके पहुंच से बाहर है। झुग्गी व झोपड़ियों में रहने वाले महिलाओं को मोती उद्योग से रोजगार उपलब्ध है।
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