काले कानून के पोषक राज नेता ही है देश को छिन्न भिन्न करने के जिम्मेवार

 संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)- देश को कमजोर करने जातियों में बांटने और द्वेष फैलाने में राजनेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इतने पर भी जब जी नहीं भरा तो देश को जातीय दंगो में झोकना जातीय हिंसा करना और दंगाइयों को सार्वजनिक माफी देना और राजनीति में टिकट देने का खेल शुरू कर दिया गया। अब ये राज नेता जातीय जनगणना करने तथा दूसरे देशों के घुसपैठियों पर भी लामबंद होना शुरू हो गए है। देश में बने काले कानून 370 35 ए को तो खत्म कर दिया गया लेकिन राष्ट्र के विरोध में बने और कानून को क्या खत्म करना जरूरी नहीं है। जिस समय देश में हिंदू कोड बिल 1956लागू किया जा रहा था उस समय के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सरदार पटेल श्यामा प्रसाद मुखर्जी मदन मोहन मालवी और उस समय के कांग्रेस के अध्यक्ष रहे पट्टाभी सीता रमैया ने भी इस कानून का विरोध किया था फिर भी इस कानून को देश में लागू कर दिया गया। जिसके तहत मंदिरों पर कब्जा और कला कृतियों को सिखाने का काम समाप्त कर दिया गया। पूजा स्थल कानून 1991 को लागू किया गया की जो मंदिर जैसे ही वैसे ही रहेंगे उसमें परिवर्तन नहीं किया जाएगा। धारा 25 के तहत कानून पास कर धर्म परिवर्तन की मान्यता दी गई जिसे 1950 में ही पास कर लागू कर दिया गया और धारा 28 के तहत हिंदुओं के धार्मिक शिक्षा पर रोक लगा दी गई वही एक तरफ लोग अपनी धार्मिक शिक्षा को जारी रखें। फिर वक्फ बोर्ड कानून 1995 को लागू किया गया जिस कानून के तहत किसी की भी जमीन को कब्जा किया जा सकता है और किसी को उस बोर्ड के में जाने के सिवाय न्यायालय में जाने का अधिकार नहीं होगा। आज भी उसे बोर्ड के बारे में भारतीय विद्यालय में बच्चों को जानकारी नहीं दी जाती है क्या इसे जानने का अधिकार आने वाली पीढ़ियों को नहीं होना चाहिए। जो संविधान की धारा के कानून 27 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है। देश में बने काले कानून 370 और 35 को तो सरकार ने खत्म कर दिया है, क्या अब इन काले कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह से यदि देखा जाए तो जो भी काले कानून बने हैं उसके पोषक सचमुच राजनेता ही है ।

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