भिवंडी पूर्व विधानसभा में नई उम्मीद

बदलाव की‌ उम्मीद के साथ चुनावी रण में परशुराम पाल

भिवंडी। राजनीति की गलियों में एक नया चेहरा, जो जनता के मुद्दों को लेकर सड़कों पर संघर्ष करने से कभी पीछे नहीं हटा, अब भिवंडी पूर्व विधानसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में है। यह चेहरा है सोशल मीडिया के चर्चित यूटूबर और सामाजिक कार्यकर्ता परशुराम पाल का।

परशुराम पाल का नाम तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने अपने दम पर शहर की गटर और नालियों की सफाई का पोल खोल अभियान चलाया। सड़कों पर हुए गड्ढों की समस्या को अनदेखा करने वाले प्रशासन को जगाने के लिए उन्होंने 'लोटपोट आंदोलन' की अनूठी पहल की।‌जिसे जनता ने खूब सराहा। यह साहसिक कदमों ने उन्हें एक ऐसे सामाजिक योद्धा के रूप में स्थापित किया, जो हर समस्या को सुलझाने के लिए पूरी ताकत झोंक देता है।

अब, राजनीति का कीड़ा उनमें बुरी तरह घर कर चुका है और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई ने एक नया मोड़ ले लिया है। वे मानते हैं कि "अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता," फिर भी, परशुराम पाल ने कभी हार नहीं मानी। अपने प्रयासों को एक नई दिशा देने के लिए उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया और बसपा ने उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें टिकट दिया।

इस बार भिवंडी पूर्व में चुनावी रण काफी रोचक है। शिवसेना (शिंदे गुट) से संतोष शेट्टी, मौजूदा सपा विधायक रईस कासम शेख, मनसे के मनोज गुलवी, और अब बसपा के परशुराम पाल के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी। शिवसेना (UBT) गुट के पूर्व विधायक रूपेश म्हात्रे के मैदान से हटने के बाद इस चुनाव की दिशा और भी दिलचस्प हो गई है।

हालांकि, परशुराम पाल के सामने चुनौती आसान नहीं है। पिछले तीन चुनावों में बसपा को 2009 में 1,284 वोट, 2014 में 840 वोट और 2019 में सिर्फ 551 वोट ही मिले है। बावजूद इसके, परशुराम पाल का मानना है कि जनता बदलाव चाहती है और इस बार उनकी कोशिशें रंग ला सकती हैं।

क्या सामाजिक सरोकारों के लिए संघर्ष करने वाला यह नया चेहरा राजनीति में अपनी जगह बना पाएगा ? क्या जनता उनकी मेहनत और संकल्प को समर्थन देगी‌ ? इन सवालों का जवाब 23 नवंबर को चुनावी नतीजों के साथ मिलेगा। फिलहाल भिवंडी की जनता परशुराम पाल में एक नई उम्मीद देख रही है।

रिपोर्टर

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