भिवंडी में रैलियों का रेला: जनता की जिंदगी से खिलवाड़

भिवंडी। विधानसभा चुनाव का आखिरी दौर अपने चरम पर है और चुनावी प्रचार में उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने शहर की सड़कों पर जैसे कब्जा कर लिया है। मोटरसाइकिल रैलियों और जुलूसों के इस रेलमपेल ने न केवल यातायात को बाधित किया बल्कि शहरवासियों की जिंदगी को भी जोखिम में डाल दिया।

शहर की खस्ताहाल सड़कों पर तेज रफ्तार और कानफाड़ू आवाज के साथ दौड़ती मोटरसाइकिलें किसी मौत के दूत से कम नहीं लग रही थीं। यातायात नियमों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए सड़कों पर फर्राटे भरने वाले यह समर्थक जनता के लिए मुसीबत बन गए।

महाविकास आघाड़ी के कांग्रेस उम्मीदवार दयानंद चोरघे, समाजवादी पार्टी की मोटरसाइकिल रैली, निर्दलीय उम्मीदवार विलास आर.पाटिल की रैली और भाजपा के समर्थन में उतरे अभिनेता-राजनेता रवि किशन के रोड शो ने भिवंडी की सड़कों पर जैसे अराजकता मचा दी। जहां एक ओर रैलियों की धूम ने चुनावी माहौल को गर्मा दिया, वहीं दूसरी ओर आम जनता के लिए यह किसी आफत से कम नहीं था। रैलियों के कारण जगह-जगह जाम लग गए, जिससे स्कूली बच्चों, ऑफिस जाने वालों और मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इन रैलियों के दौरान पुलिस प्रशासन की लापरवाही भी साफ नजर आई। सुरक्षा व्यवस्था और यातायात नियंत्रण की कोई पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण शहर की स्थिति बदतर हो गई। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चुनावी प्रचार के नाम पर जनता की सुरक्षा को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहेगा?. भिवंडी के नागरिकों ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि ऐसे अराजकता फैलाने वाले प्रचारों पर रोक लगाई जाए। जनता का कहना है कि चुनाव प्रचार अपने स्थान पर हो, लेकिन यह नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा की कीमत पर नहीं होना चाहिए।राजनीतिक दलों के लिए जनता का भरोसा जीतना महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या यह तरीका सही है? इस चुनावी मौसम में यह सवाल हर नागरिक के मन में गूंज रहा है।

रिपोर्टर

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