
भिवंडी में कांग्रेस का अस्तित्व पर संकट गहराया
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Nov 24, 2024
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गुटबाजी और असंतोष ने डुबोई चोरघे की नैया
भिवंडी। भिवंडी शहर में कांग्रेस पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है। गुटबाजी, आंतरिक खींचतान और नेतृत्व की कमजोर नीतियों ने पार्टी को ऐसा नुकसान पहुंचाया है कि अब उसका अस्तित्व ही खतरे में नजर आ रहा है। 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाविकास आघाडी गठबंधन के बैनर तले भिवंडी पश्चिम सीट से उम्मीदवार खड़ा किया, लेकिन पार्टी का प्रदर्शन अब तक के सबसे निचले स्तर पर रहा। चुनावी आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछले तीन चुनावों में लगातार गिरा है।
2009 में कांग्रेस उम्मीदवार जावेद दलवी गुलाम को 24,998 वोट मिले जबकि 2014 के चुनाव में शोहेब खान गुडडू को 39,157 वोट मिले और 2019 में शोहेब खान गुडडू को 28,359 वोट मिले।
2024 महाविकास आघाडी के तहत कांग्रेस के दयानंद चोरघे को सिर्फ 21,980 वोट मिले। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इस चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर ग्रामीण नेता दयानंद चोरघे को उम्मीदवार बनाया। इस फैसले ने स्थानीय नेताओं को नाराज कर दिया। भिवंडी शहर अध्यक्ष रशीद ताहिर मोमिन,ताल्हा मोमिन, विलास आर.पाटिल और आस्मां जव्वाद चिखलेखर जैसे स्थानीय नेताओं ने टिकट के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी। लेकिन पार्टी के फैसले से निराश होकर विलास पाटिल और आस्मां जव्वाद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, जिससे कांग्रेस का वोट बैंक बंट गया।
चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी के कई नेता भले ही सार्वजनिक रूप से दयानंद चोरघे का समर्थन करते नजर आए, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, कई नेताओं ने अंदर ही अंदर अन्य उम्मीदवारों का समर्थन किया। यह गुटबाजी और असंतोष कांग्रेस की हार का मुख्य कारण बना। महाविकास आघाडी के सहयोगी दलों (शिवसेना ठाकरे गुट और राकांपा शरद पवार गुट) के साथ गठबंधन होने के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। 21,980 वोट हासिल करना यह दर्शाता है कि पार्टी की पकड़ अब कमजोर हो चुकी है। स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस को भिवंडी में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा। गुटबाजी खत्म करना, स्थानीय नेताओं को सशक्त करना और मतदाताओं के साथ सीधा संवाद करना पार्टी के लिए जरूरी हो गया है। क्या कांग्रेस भिवंडी में अपनी खोई साख को वापस पा सकेगी, या यह ऐतिहासिक शहर उसकी राजनीति का कब्रगाह बन जाएगा ?
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