भिवंडी में बसपा के गिरते वोट बैंक से पार्टी पर संकट

नेतृत्व की कमजोरी बनी वजह

भिवंडी। मजदूर बाहुल्य और उत्तर भारतीय आबादी वाले भिवंडी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनाधार लगातार घटता जा रहा है। जहां समाजवादी पार्टी ने इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी है। वहीं बसपा में नेतृत्व की कमी और रणनीतिक असफलताओं के चलते पार्टी के वोट बैंक में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। पिछले 15 वर्षों के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि भिवंडी पूर्व और पश्चिम विधानसभा सीटों पर बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। वर्ष 2009 से 2024 तक, बसपा के उम्मीदवारों को मिलने वाले वोटों में लगभग 60% की कमी आई है।

भिवंडी पूर्व में 2009 में सतीश बाबू गिरी को 1,284 वोट मिले थे, जो 2024 में परशुराम पाल के साथ मात्र 540 तक सिमट गए। इसी प्रकार भिवंडी पश्चिम में 2009 में अब्दुल्ला एकलाख अहमद को 846 वोट मिले थे, जो 2024 में मोबीन सिद्दीकी शेख के साथ घटकर 407 रह गए।

स्थानीय कार्यकर्ताओं और समर्थकों का कहना है कि भिवंडी में पार्टी के लिए कोई मजबूत और सक्रिय नेतृत्व नहीं है। नीतिगत विफलताओं और स्थानीय स्तर पर संवाद की कमी के कारण पार्टी के समर्थक धीरे-धीरे अन्य पार्टियों की ओर रुख कर रहे है।विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बसपा अपने नेतृत्व में बदलाव करते हुए जमीनी स्तर पर सक्रियता बढ़ाती है, तो वह आगामी नगर पालिका चुनावों में फिर से उभर सकती है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि भिवंडी की जनता आज भी बसपा के विचारधारा और "हाथी" निशान से जुड़ी हुई है, लेकिन उन्हें एक सक्षम नेतृत्व की तलाश है। गिरते हुए वोट बैंक के ये आंकड़े न केवल भिवंडी बल्कि महाराष्ट्र में बसपा की स्थिरता के लिए भी खतरे की घंटी है। अगर पार्टी जल्द ही मजबूत कदम नहीं उठाती, तो उसका अस्तित्व भिवंडी जैसे शहरों में पूरी तरह समाप्त हो सकता है। क्या बसपा अपनी गिरती साख को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएगी, या भिवंडी में "हाथी" चुनाव चिन्ह सदा के लिए समाप्त हो जायेगा।

रिपोर्टर

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