आरक्षण की तलवार से सवर्ण पीढ़ियों को मिटाने की साजिश




दुर्गावती संवाददाता श्याम सुंदर पांडे 


कैमूर- दलित का वोट प्राप्त करने के लिए बाबा साहब अंबेडकर को ढाल बनाकर आज देश में राजनीति हो रही है। संविधान में बाबा साहब अंबेडकर ने 10 वर्षों तक आरक्षण बनाकर दलितों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की अनुशंसा की थी। साथ ही उन्होंने कहा था की आरक्षण की सुविधा परमानेंट नहीं की जानी चाहिए नहीं तो यह समाज विकलांग हो जाएगा। लेकिन भारतीय राजनेताओं ने बाबा साहब के नाम पर खूब रोटियां सेकी और इसे परमानेंट कर दिया जो देश के लिए घातक साबित हो रही है। मुगल शासन काल में उस समय के शासको ने लोगों को धर्म परिवर्तन के नाम पर कत्लेआम की जो लंबे समय तक चला। लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिवेश में आजादी के बाद से अब तक आरक्षण के तलवार से जो मेधावी छात्रों का कत्लेआम किया जा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। विश्व का कोई भी देश अपने देश में मेधावी छात्रों को दरकिनार कर निम्न स्तर पर अंक पाने वाले को प्राथमिकता नहीं देता। दुनिया का भारत एक मात्र पहला देश है जहां 100% वाले ठेला चलाते हैं तो 50% और 35% पाने वाले सरकारी कुर्सी बैठकर शासन कर रहे हैं। जिसका परिणाम है कि चारो तरफ दफ्तर में जहां देखो काम की जो रफ्तार है बिल्कुल धीमी पड़ी हुई है और जनता ऑफिस दौड़ते दौड़ते परेशान है। आपको हर दस्तावेज में हर जगह इन अयोग्य कर्मचारियों की वजह से अशुद्धियां दिखाई देगी जिसको सुधरवाते सुधरवाते जनता थक जाती है लेकिन फिर भी सुधार होने का नाम नहीं लेता यह सब क्या हो रहा है इस देश में क्या इन अशुद्धियो की सच्चाई से मुंह मोड़ा जा सकता है। आरक्षण के नाम पर सवर्ण समाज को मिटाने की साजिश पीढ़ी दर पीढ़ी का परिणाम का सच दूसरा क्या हो सकता है। आजादी के बाद कम अंक वाले नौकरी करेगे और ज्यादा अंक वाले ठेला चलाएंगे क्या उसे समय के लोगों ने आजाद भारत में ऐसा होगा यही  कल्पना की थी यह साजिश का हिस्सा नहीं है तो क्या है। आजाद भारत में जमींदारी काश्तकारी सब कुछ छीन लिया गया अब क्या बचा है सवर्णों के पास अब कौन सवर्ण लैंड लॉर्ड है ,फिर भी प्रतिभाओं को कुचलने का खेल लगातार चल रहा है। यह कब तक चलेगा ईस देश में क्या इसकी कोई सीमा है या आने वाले वंश परंपरा को मिटाने का खेल इसी तरह से जारी रहेगा।

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