भिवंडी-निज़ामपुर महानगर पालिका प्रशासन पर संकट

आयुक्त छुट्टी पर, कार्यालय सील, शहर के विकास पर ब्रेक

भिवंडी। भिवंडी-निज़ामपुर शहर महानगर पालिका में इन दिनों प्रशासनिक अराजकता और अव्यवस्था का माहौल है। वर्तमान आयुक्त और प्रशासक अजय वैद्य के लंबी छुट्टी पर जाने के बाद जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसने पूरे शहर को असमंजस में डाल दिया है.शासन ने अतिरिक्त आयुक्त विठ्ठल डाके को नियंत्रण अधिकार का चार्ज दिया तो है, लेकिन उन्हें हस्ताक्षर करने या कोई निर्णय लेने की अनुमति नहीं दी गई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अजय वैद्य ने खुद अपने कार्यालय को सील करवा दिया है। कार्यालय के बाहर चस्पा किए गए हस्ताक्षरयुक्त स्टीकर ने प्रशासन की अक्षम स्थिति को उजागर कर दिया है।

भिवंडी-निज़ामपुर महानगर पालिका, जो पहले से ही कई प्रशासनिक और विकासात्मक समस्याओं से जूझ रही है, अब पूरी तरह ठप हो गई है। नगर पालिका का कामकाज न केवल प्रभावित हुआ है, बल्कि महत्वपूर्ण योजनाएं, प्रस्ताव, और दैनिक प्रशासनिक कार्य पूरी तरह से रुक गए है.आयुक्त की अनुपस्थिति में अतिरिक्त आयुक्त विठ्ठल डाके को नियंत्रण का चार्ज तो सौंपा गया, लेकिन निर्णय लेने और हस्ताक्षर करने के अधिकार छीनकर उन्हें सिर्फ एक प्रतीकात्मक पद पर बिठाया गया है।

इस अभूतपूर्व घटनाक्रम ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। नागरिकों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि आखिरकार यह स्थिति क्यों और कैसे बनी? कई लोग इसे प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा मान रहे हैं, तो कुछ इसे जानबूझकर की गई राजनीतिक चाल बता रहे हैं।

अजय वैद्य के अपने कार्यालय को सील करवाने का फैसला भिवंडी के इतिहास में पहली बार हुआ है। यह निर्णय न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया को बाधित करता है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या यह सब किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है ?

इस पूरे घटनाक्रम ने भिवंडी के नागरिकों को परेशान कर दिया है। लोग नगर पालिका से जुड़े अपने कामों को लेकर भटक रहे हैं। विकास कार्य ठप पड़ गए हैं, जबकि नागरिकों को बेहतर सुविधाओं की उम्मीद थी। नियम के अनुसार, आयुक्त के अनुपस्थित रहने पर अतिरिक्त आयुक्त को कार्यभार सौंपा जाता है। इस बार इसे नजरअंदाज क्यों किया गया? यह सवाल न केवल अधिकारियों पर बल्कि शासन की मंशा पर भी उंगली उठाता है।

यह घटनाक्रम महज प्रशासनिक गलती है या किसी गहरी राजनीतिक साजिश का हिस्सा‌? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जिसमें अतिरिक्त आयुक्त विठ्ठल डाके को सीमित अधिकार देकर नगर पालिका को ठप कर दिया गया है। इस प्रशासनिक संकट के बीच, सरकार की अगली चाल पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं। क्या राज्य सरकार तुरंत हस्तक्षेप कर स्थिति को सुलझाएगी, या यह संकट और गहराएगा?

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट