वनजमीन पट्टों की मांग को लेकर श्रमजीवी संगठन का भिवंडी उपविभागीय कार्यालय के सामने अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन

भिवंडी। भिवंडी ग्रामीण समेत संपूर्ण ठाणे जिले में हजारों आदिवासी समाज के वन अधिकार दावे लंबित पड़े हैं। इसी के विरोध में श्रमजीवी संगठन ने सोमवार से भिवंडी उपविभागीय अधिकारी कार्यालय के सामने अनिश्चितकालीन निर्णायक धरना आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन का नेतृत्व श्रमजीवी संगठन के महासचिव बालाराम भोईर, प्रदेश उपाध्यक्ष दत्तात्रय कोलेकर, जिलाध्यक्ष अशोक सापटे, पदाधिकारी दशरथ भालके, सुनील लोणे, सागर देसक, राजेंद्र म्हस्कर, आशा भोईर, तानाजी लहांगे और प्रकाश खोडका कर रहे हैं। इस आंदोलन में सैकड़ों आदिवासी पुरुष और महिलाएं शामिल हुईं।

श्रमजीवी संगठन पिछले 40 वर्षों से वन अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। संघर्ष, आंदोलन और सत्याग्रह के माध्यम से ही केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकार) अधिनियम, 2006 तथा नियम 2008 व संशोधन 2012 को लागू कराया गया।हालांकि, इस कानून के तहत आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनका वन अधिकार मिलना चाहिए था, लेकिन अब तक उन्हें उनका हक नहीं मिला। इस पर महासचिव बालाराम भोईर ने चिंता व्यक्त की और बताया कि इससे पहले ठाणे और पालघर जिलाधिकारी कार्यालय के सामने 13 और 11 दिन के आंदोलन के बाद न्याय मिला था। इसी तरह इस आंदोलन से भी निर्णायक न्याय लेकर रहेंगे। ठाणे जिले में कुल 17,212 वन अधिकार दावे जिला समिति के पास लंबित थे, जिनमें से 6,538 दावे स्वीकृत हुए। लेकिन, 8,804 दावे खारिज कर दिए गए, जबकि 1,870 दावे अब भी लंबित हैं।

भिवंडी और शहापुर तालुकों में ही 756 दावे उपविभागीय समिति के पास लंबित हैं। इसके अलावा, भिवंडी उपविभागीय क्षेत्र के 2,845 आदिवासी और 3,145 गैर-आदिवासी दावे जिला समिति ने खारिज कर दिए हैं। कुल 6,040 दावों को भिवंडी उपविभाग ने खारिज कर जिला समिति को भेजा, जिसका श्रमजीवी संगठन ने विरोध किया है। आंदोलनकारियों ने मांग की है कि जिला वन अधिकार समिति और उपविभागीय समिति के पास लंबित वन अधिकार दावे जल्द से जल्द मंजूर किए जाएं और आदिवासियों को वन पट्टे दिए जाएं। खारिज किए गए दावों की पुन: समीक्षा कर सुनवाई की जाए और उन्हें जल्द से जल्द स्वीकृति दी जाए। 02 फरवरी 2024 के सरकारी आदेश के अनुसार धारा 3(2) के तहत वन क्षेत्र में गांव बसाने की अनुमति दी जाए।  आदिम कातकरी जनजाति की बस्तियों का सर्वेक्षण कर उन्हें मान्यता दी जाए। आंदोलन में शामिल कई आदिवासी अपने परिवारों के साथ धरना स्थल पर डेरा डाल चुके हैं। वे लकड़ी और चूल्हे लेकर आए हैं और वहीं पर भोजन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। श्रमजीवी संगठन ने स्पष्ट किया है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

रिपोर्टर

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