समाज की मजबूती ही मेरी मजबूती – सी. पी. मिश्रा

कल्याण। अगर समाज पीछे है, तो मैं कभी आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि समाज ही मेरा आधार, मेरी शक्ति और मेरी पहचान है। इन प्रखर शब्दों के साथ समाजसेवी और चिंतक सी. पी. मिश्रा ने एक ऐसा विचार अभियान छेड़ा है, जिसने समाज के हर वर्ग में सोच और आत्ममंथन की लहर पैदा कर दी है। पिछले चार दिनों से लगातार, मिश्रा अपने मार्मिक संदेशों के जरिये समाज की वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और सुधार के रास्तों पर खुलकर संवाद कर रहे हैं।

अपने पहले ही संदेश में मिश्रा ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि अगर समाज में दरारें पड़ रही हैं, तो इसका कारण कोई बाहरी ताकत नहीं, बल्कि हम स्वयं हैं। उन्होंने कहा, हम अपने स्वार्थ, आपसी मतभेद और संवाद की कमी से खुद अपने समाज की जड़ों को कमजोर कर रहे हैं। यह सच जितनी जल्दी हम मानेंगे, उतनी जल्दी बदलाव संभव है।

दूसरे दिन के विचार में मिश्रा ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ नारेबाजी या दिखावटी एकता से समाज का भला नहीं होगा। उन्होंने कहा, आज हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो निडर होकर सही फैसले ले और समाज को आगे बढ़ाने के लिए ठोस दिशा दे। व्यक्तिगत सफलता तब तक अधूरी है, जब तक समाज पिछड़ रहा है।

तीसरे दिन मिश्रा ने लोगों से आग्रह किया कि वे चुप्पी तोड़ें और आपसी संवाद को बढ़ावा दें। उन्होंने कहा, बदलाव किसी एक व्यक्ति के प्रयास से नहीं आएगा। हमें दूसरों के विचार सुनने होंगे, समझने होंगे और उन्हें साथ लेकर चलना होगा। यही वास्तविक एकजुटता है।

अपने चौथे संदेश में मिश्रा ने संख्या से ज्यादा सोच की ताकत पर जोर दिया। हम यह साबित करें कि हम सिर्फ भीड़ नहीं, बल्कि विचारों में भी सबसे आगे हैं। जब हम सोच में अग्रणी होंगे, तभी समाज को मजबूती मिलेगी और वही हमारी असली ताकत होगी।

मिश्रा का मानना है कि समाज की कमजोरी पर चुप रहना भी एक अपराध है। उन्होंने कहा, यह केवल मेरी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की चिंता है, जो समाज की गिरती एकता को महसूस करता है। अब वक्त खुलकर बोलने का, जिम्मेदारी निभाने का और एकजुट होकर समाज के भविष्य को संवारने का है । मिश्रा के इन संदेशों ने युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक में चर्चा का माहौल बना दिया है। कई लोग अब इस विचार अभियान से जुड़ने की इच्छा जता रहे हैं। 

आम जनता ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उत्तर भारतीय समाज की मौजूदा स्थिति पर कई लोगों की यह पीड़ा सामने आती है कि हमारे बीच सच्चे और ईमानदार नेतृत्व की कमी है। समाज में सक्रिय दिखने वाले कई लोग केवल दिखावे और व्यक्तिगत लाभ के लिए काम करते हैं, जिससे आम लोग हतोत्साहित हो जाते हैं।

आज जरूरत है कि ऐसे भ्रम फैलाने वालों की पहचान की जाए और उनका बहिष्कार किया जाए। समाज के 1000 सक्रिय लोगों में 50 ऐसे लोग भी है जो भ्रम फैलाते और तो वे बाकी 950 को भी अपने जैसा बना सकते हैं। यही कारण है कि आम जनता समाज के काम में आगे आने से कतराती है और किसी दूसरे समाज के नेता के पीछे समय गुजार देती है।

जो वास्तव में नेतृत्व करना चाहते हैं, उन्हें संगठित होकर ईमानदारी से समाजहित में काम करना चाहिए। आज सच्चे नेतृत्व और पारदर्शी कामकाज के बिना समाज आगे नहीं बढ़ सकता, और ऐसे में हर जिम्मेदार व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह समाज को आईना दिखाने से पीछे न हटे।

रिपोर्टर

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