गीता और कुरआन की रोशनी में सद्भाव की राह

रज़ी चिश्ती ने डीसीपी शशिकांत बोराटे को सौंपी ‘सूफीवाद’ की मशाल


भिवंडी।  विविधता से भरे भारत में सामाजिक सद्भाव और सांप्रदायिक समरसता के संदेश को ज़मीनी स्तर पर उतारने की दिशा में भिवंडी की धरती पर एक सार्थक वैचारिक संवाद संपन्न हुआ। सूफी विचारधारा और इस्लाम के रहस्यवाद पर 23 पुस्तकों के लेखक तथा दरगाह हज़रत मोहिउद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह, पशुहारी शरीफ (बलिया, उत्तर प्रदेश) के गद्दीनशीन सेवानिवृत्त जिला जज हज़रत रज़ी अहमद चिश्ती ने भिवंडी ज़ोन-2 के पुलिस उपायुक्त शशिकांत बोराटे से मुलाकात की।दोनों के बीच हुई चर्चा में गीता के ‘धर्मयुद्ध’ और कुरआन के ‘जिहाद’ को एक ही आदर्श की दो व्याख्याएँ बताया गया — न्याय, सत्य और शांति की स्थापना। रज़ी चिश्ती ने कहा कि जब तक समाज धार्मिक शिक्षाओं के मूल तत्वों को नहीं समझेगा, तब तक सच्चे अर्थों में सामाजिक समरसता संभव नहीं है।इस अवसर पर चिश्ती ने अपनी पुस्तक ‘वो इस्लाम जो हमसे कहीं छूट गया’ डीसीपी बोराटे को भेंट की। यह पुस्तक कुरआनी दलीलों के माध्यम से समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने और समरसता की भावना को सुदृढ़ करने का प्रयास करती है। इस मुलाकात के दौरान ‘खबर-दर-खबर’ मल्टी मीडिया ग्रुप के प्रधान संपादक मुनीर अहमद मोमिन, डॉ. अब्दुल अज़ीज़ अंसारी और ज़ाकिर हुसैन अंसारी भी उपस्थित रहे।हज़रत रज़ी अहमद चिश्ती ने कहा कि इस्लामी सूफीवाद ही विश्व शांति, सामाजिक सौहार्द और भारत के समग्र विकास का आधार है। उनके अनुसार सूफीवाद केवल इबादत नहीं, बल्कि मानवता की सेवा, नैतिक जागृति और सामाजिक संतुलन का मार्ग है। उन्होंने कुरआन की आयत “निःसंदेह अल्लाह हुक्म देता है इंसाफ़ करने, भलाई करने और रिश्तेदारों को देने का” (सूरह नहल, आयत 90) उद्धृत करते हुए कहा कि न्याय, करुणा और भलाई इस्लामी समाज की पहचान हैं।उन्होंने एक गहन संदेश देते हुए कहा, “धर्म को आत्मा बनाओ, हथियार नहीं। जब धर्म आत्मा बन जाता है, तो इंसान फ़रिश्ता बन जाता है, लेकिन जब वही धर्म हथियार बनता है, तो इंसान हैवान बन जाता है।” उनका मानना है कि शिक्षा प्रणाली में सूफी साहित्य और दर्शन को शामिल किया जाना चाहिए ताकि बच्चों में करुणा और सर्वधर्म समभाव की भावना विकसित हो।रज़ी चिश्ती ने कहा, “भारत की रूह अगर ज़िंदा रखनी है तो दरगाहों के चिराग़ों को बुझने मत देना।” उनके अनुसार सूफी परंपरा के केंद्र — चाहे वह अजमेर शरीफ हो या हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह — सभी धर्मों के लोगों के लिए आध्यात्मिक एकता और शांति के प्रतीक हैं।डीसीपी शशिकांत बोराटे के साथ यह संवाद इस बात का प्रमाण बना कि प्रेम, संवाद और समझदारी ही आज के समय में सामाजिक सद्भाव का सबसे सशक्त माध्यम हैं।

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