गीता जयंती महोत्सव शोभायात्रा से शुरू

9 दिवसीय कार्यक्रम में योग, ध्यान और शास्त्र-विमर्श  

रोहतास ।जिला मुख्यालय सासाराम शहर ने इस सप्ताह अपने वार्षिक गीता जयंती एवं श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव की शुरुआत की, जिसमें स्थानीय धार्मिक परंपरा और व्यापक भारतीय आध्यात्मिक विरासत की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई दी। गीता घाट आश्रम के अध्यक्ष श्री महंत स्वामी कमलानंद जी महाराज के नेतृत्व में निकली शोभा यात्रा ने शहर के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को एक दिन के लिए धार्मिक एकाग्रता में बदल दिया।

गीता घाट आश्रम से आरंभ हुई यात्रा गीता घाट कॉलोनी, फजलगंज और काली स्थान जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों से गुजरी, जो पारंपरिक धार्मिक आयोजनों में समाज की भागीदारी को रेखांकित करते हैं। यात्रा बेदा स्थित सूर्य मंदिर पर जलभरी की विधि के साथ अपने महत्वपूर्ण पड़ाव गीता घाट ,आश्रम पर पहुँची। यात्रा के शांतिपूर्ण संचालन ने स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवकों के समन्वय को भी दर्शाया।

आयोजन समिति ने बताया कि अगले नौ दिनों तक शास्त्र-वाचन, गीता-चिंतन और गुरुदेव के ग्रंथों पर आधारित संवाद-सत्र होंगे। सुबह के योग, प्राणायाम और ध्यान कार्यक्रम को व्यापक जनसहभागिता के लिए तैयार किया गया है, जो आधुनिक जीवनशैली में मानसिक संतुलन की आवश्यकता को प्रतिबिंबित करता है। 

इस आयोजन में देशभर से आए संत,जिनमें स्वामी प्रेमानंद जी महाराज, स्वामी भगवाताचार्य (हरिद्वार), स्वामी अमरेंद्र आनंद जी (द्वारका), स्वामी भारतानंद जी और स्वामी अर्जुनानंद जी शामिल हैं,ने इसे एक साझा आध्यात्मिक मंच के रूप में देखा है। उनकी उपस्थिति स्थानीय समुदाय और अन्य क्षेत्रों के साधकों के बीच संवाद को बढ़ाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है।

आयोजन में लगे स्वयंसेवकों और स्थानीय संगठनों, जिनमें क्षितिज सिंह, विनीत कुमार राय, कुमार श्वेतांशु, राकेश श्रीवास्तव, हरिओम जी, गोविंद जी, सूरज कुमार, आयुष, आरती केसरी, पूनम देवी, सोनी सिंह, दीपा गुप्ता, संगीता जी, रेखा देवी और सोभा देवी शामिल हैं,ने यात्रा और कार्यक्रम के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई। यह सामाजिक भागीदारी भारत के छोटे शहरों में भी आध्यात्मिक - धार्मिक आयोजन की मजबूत परंपरा को उजागर करती है।

पिछले एक दशक में, भारतीय धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में बढ़ते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आकर्षण को वैश्विक सांस्कृतिक प्रवृत्तियों का हिस्सा माना जा रहा है। योग, ध्यान और शास्त्रीय अध्ययन की लोकप्रियता न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में बढ़ी है।

सासाराम जैसे शहरों में होने वाले आयोजन अब केवल स्थानीय धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि वैश्विक आध्यात्मिक पहचान की निरंतरता का हिस्सा माने जा रहे हैं।

रिपोर्टर

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