ग्रामीण भागो से विलुप्त हो रहे कुए व तालाब

अर्जुन शर्मा.....

जौनपुर । पूर्वजों द्वारा सहेजे गए कुओं व तालाबों का अस्तित्व समाप्त होने से जल संकट लगातार बढ़ रहा है। अभी भी भारी संख्या में गड्ढे व तालाब अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सके हैं। वहीं, तमाम लोगों ने कुओं को पाट दिया है। मनरेगा के तहत खोदवाए गए तालाबों को नहरों से जोड़ने की योजना पर प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा सका। विलुप्त हो रही पुरानी परंपराएं जीवन पर विपरीत असर डाल रहीं हैं। पानी के लिए कुओं पर आश्रित लोग आज भी प्राचीन पद्धति की अनदेखी से आहत हैं।

कुओं की संख्या लगातार कम हो रही है। जलस्तर घटने से सूखे कुएं को लोग पटवा रहे हैं। मौजूदा समय में महज 1978 कुएं ही बच पाए हैं, जिनमें अधिकतर सूखे हैं। बचे रह गए कुओं का पानी भी प्रदूषण की वजह से पीने योग्य नहीं है। आकड़ों में भले ही 19 हजार तालाबों की बात की जा रही हो, लेकिन इनमें गिने-चुने तालाबों में ही पानी है। पाताल में समा रहे जल स्तर को बरकरार रखने के लिए नहरों को तालाबों से जोड़ने की तैयारी की गई थी, लेकिन फिलहाल इस दिशा में प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इतना ही नहीं तमाम प्रयास के बावजूद लोग गड्ढों-तालाबोंकी जमीनों पर अभी तक काबिज हैं। सिंचाई विभाग की लापरवाही की वजह से तमाम नहरों में पानी नहीं है, जिससे किसान सिचाई तक नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर लापरवाही प्रत्येक स्तर पर बरती जा रही है। तालाबों, कुओं को संरक्षित करने की परंपरा के विपरीत अब लोग तेजी से इसे पाटने पर जुटे हैं, जिससे स्थिति बिगड़ रही है। इसी वजह से गिने-चुने स्थानों पर कूएं नजर आते हैं। लगातार गिर रहे जल संकट की वजह से जिले के आठ ब्लाक डॉर्क जोन में आ चुके हैं। तमाम गांवों में सूखे पड़े हैंडपंप से पानी किल्लत लगातार बढ़ रही है।

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