मानव का समग्र विकास तब होगा जब समस्त जीवो के साथ मैत्री भाव रखेगा- पंडित रामानंद शास्त्री

रोहनिया ।। अखरी भगवती माता प्रांगण में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन भागवताचार्य पंडित रामानंद शास्त्री जी ने बताया कि पुरुषार्थ लौकिक पारलौकिक अनुक्रम से कर्म के सृजन में सहायक और दैव अनुग्रह में प्रदाता है सेवा जप तप यज्ञ आदि परमार्थिक उपक्रम पुरुषार्थ से ही सिद्ध और फली भूत होते हैं। वस्तुतः निरभि मानी और पुरुषार्थ संपन्न जीव ही श्रेष्ठ है श्रीमद्भागवत महापुराण में मानव के साथ-साथ सभी जीवो के कल्याण की कल्पना एवं संरचना संस्थापित की गई है मनुष्य को स्वाभिमान से जीने की कला एवं अभिमान को त्यागने की व्याख्या को समुचित रूप से प्रतिपादित किया गया है ।महाराज मनु के द्वारा आरंभ इस सृष्टि में मानवता ही प्रधान विषय है हम मनुष्य तो है पर हमारे अंदर मानवता नहीं आ पाती हम एक दूसरे से प्रेम की जगह ईस्या करते हैं द्वेष रखते हैं जबकि मानव का समग्र विकास तब होगा जब समस्त जीवो के साथ मैत्री भाव रखेगा ।यह तभी संभव है जब हम भगवान की भक्ति को अपनाएंगे बिना भक्ति के जीवन अधूरा और अपूर्ण है। भक्ति के बिना समर्पण संभव ही नहीं है भागवत में पूर्ण समर्पित हो जाने मात्र से भगवत सन्निधि की प्राप्ति हो जाती है। महाराज मनु के पुत्रीयों के वंश वर्णन के क्रम में भगवान कपिल देव जी ने सांख्य शास्त्र का प्रवर्तन किया 25 तत्वों की व्याख्या एवं नागरिक की जीवो की दुर्गति का वर्णन किया। कार्यक्रम के आयोजक अरविंद तिवारी गांव से बस्ती वाली परिभाषाएं तथा श्रोताओं का स्वागत एवं अभिनंदन किया। संचालन अनुराग तिवारी ने किया।

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