सत्यगाथा


सड़को  पर सन्नाटा सा , कैसा छाया ताप 

देश निगलने को चला , देखो - देखो पाप

देखो - देखो पाप , सांप बनकर फुफकारे 

जनता  है  हलकान , जान  दंगा  ना  मारे 

कह बृजेश कविराय अरे आरक्षण क़ा दंश 

कलयुग क़ा रावण यही , यही बना है कंस 

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