
प्रकृति में प्राणियों का सम्बन्ध
- राजेश कुमार शर्मा, उत्तर प्रदेश विशेष संवाददाता
- Jul 29, 2018
- 679 views
प्रकृति में प्राणियों का सम्बन्ध -प्रकृति शब्द का जब हमारे सामने चर्चाएं या उल्लेख होता है तो मन में येप्रकृति परिवर्तनशील होते भी अपरिवर्तनशील है। जहाँ तक प्राणियों की सम्बन्ध की बातें हैं तो सर्वप्रथम हमलोग अपने परिवार को ध्यान में रखते हैं। कि बड़े और छोटों का सम्बन्ध क्या है उनका एक दूसरे के साथ व्यव्हार क्या है ।ठीक उसी प्रकार हम देखते हैं की समस्त चर -अचर, जीव- जन्तुएं किस तरह से एक -दूसरे पर निर्भर है। सभी जीव -जन्तुएं उस पादप और पेड़ -पौधों पर निर्भर हैं। इस तरह से पेड़ -पौधें सभी प्राणियों का श्रेष्ठ भ्राता के सामान है. क्योंकि चीटीं ,मकरे से लेकर पशु -पक्षी और मनुष्य आदि उसी पर निर्भर होते हैं। इनसे छोटे अनुज चौपाये जानवर है जिनपर मनुष्य ,पक्षी आदि निर्भर होता है। इस तरह से देखा जाय तो मनुष्य प्रकृति का सबसे छोटा और विवेकशील प्राणी है। विवेकशील प्राणी का मतलब क्रूर मालिक से नहीं है, बल्कि विनम्र माली से है। पेड़ -पौधों में फल लगा हो या न लगा हो चौपाये जानवर उनकी पत्तियों को खाकर भूख को शांति करता है। चीटीं -मकरें जड़ ,तना ,फल आदि को खाकर जीवन जीते है।और मनुष्य इन सभी का उपभोग कर जीवन जीता है। पेड़ -पौधों में एक सराहनीय गुण है जिससे हमें सीख मिलता है। कि जब पेड़ -पौधों में फल लगता है तो वह झुक जाता है। ऐसा प्रतीत होता है की फल लगाने के बावजूद अकड़ नहीं ,गुरुर नहीं बल्कि विनम्र हो जाता है। ऐसा हमारे समाज में भी कभी-कभी देखने को मिलता है। जो देवता के श्रेणी में आता है। जब हम मनुष्य पेड़ -पौधों पर दंड प्रहार करते है तो उसके पास जो कुछ होता है चाहे लकड़ी हो ,पत्ते हो ,या फल हो वह हमें प्रदान करता है और हमें कभी नाखुश नहीं करता है। जिस तरह से बालक अपने बाबा ,दादा का दाढ़ी -मूँछ उखाड़ लेता है ,पापा का थाली खींच लेता है माँ के पल्लू में छीप जाता है लेकिन वो कभी भी बुरा नहीं मानते है। डॉ जगदीश चंद्र बसु ने भी कहा था कि ये पेड़ -पौधे हमारी तरह श्वसन करते है ,दुःख व्यक्त करते है ,प्रसन्न होते है,भोजन बनाते है और संतानोत्पति करते हैं। यह ऋषि और महात्माओ की तरह सर्दी में ठण्ड को झेलते हुए हमें गर्मी प्रदान करती है ,गर्मीकी प्रचंड धुप को बर्दास्त कर हमें छाया प्रदान कराती है ,कड़कती हुयी बिजली तथा ओले को बर्दास्त कर पशु -पक्षियों को शरण प्रदान \\करती है। और भगवान भोलेनाथ की तरह खुद् कार्बनडाई आक्साइड को ग्रहण कर हमें प्राणवायु ऑक्सीजन प्रदान करती है। जो देता है वही देवता है। इसलिए हमारी भारतीय संस्कृति में पेड़ -पौधों को पूजन करने का प्राविधान बनाया गया है।
आभास होने लगता है कि ये नदी ,धरा ,वायु, आकाश, ग्रह ,नक्षत्र ,तारें कीड़ें -मकोड़े ,चौपाये जानवर ,पशु -पक्षी ,पेड़ -पौधें ,मनुष्य आदि प्रकृति है। वैसे कह सकते हैं कि प्रकृति परिवर्तनशील होते हुए भी अपरिवर्तनशील है। प्रकृति में बहुत सी मौसम ,ऋतुएँ होती हैं और हर मौसम ,ऋतुएँ में इनकी आकृति अलग -अलग तरह से दिखाई देती है फिर भी यह क्रम हमेशा एक चक्रीय क्रम में दिखाई देती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि ' जिससे हम कुछ प्राप्त करते हैं या सीखते हैं उनका सम्मान करें '
नोट --आपका सुझाव श्रद्धेय है।
रिपोर्टर