सत्यगाथा


बांग्लादेशी थे भरे असम हुआ हलकान 

लाखों मे  तादात है , पता चली पहचान 

पता  चली  पहचान , शान से रोटी तोड़े 

सरकारी  हर  कामो  मे , अटकाते  रोड़े 

कह बृजेश कविराय पास होगा परवाना 

बहुत हुआ घूसपैठ ढूंढ लो ठौर ठिकाना 

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