दिव्यांग कह देने से विकलांग की समस्या समाप्त नहीं हो जाती
- संदीप मिश्र, ब्यूरो चीफ जौनपुर
- Jun 03, 2020
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जौनपुर ,उत्तर प्रदेश, भारत।
5 वर्ष से जिलाधिकारी के कहने पर भी दिव्यांग को आवास एवं शौचालय की सहायता नहीं।
प्रशासन की लापरवाही या गलत नीतियों के कारण दिव्यांग विनोद सिंह, ग्राम लौदा, ब्लॉक सुईथाकला, तहसील-शाहगंज,जनपद- जौनपुर 2015 से सर पर छत और परिवार के लिये इज्जत घर को तरस रहा है। सन 2007 में एक्सीडेंट से कमर के नीचे का भाग सुचारू रूप से कार्य नहीं कर रहा है जिसके कारण से विकलांगता का जीवन यापन करने को यह व्यक्ति मजबूर है। निष्ठुर नियति का खेल देखिये कि उस विकलांग को जो समस्या से जूझ रहा है पिता और भाइयों ने घर मकान, खेती-बाड़ी, में कुछ भी नहीं दिया है।
12/01/2015 को पूर्व जिलाधिकारी जौनपुर सुहास एलवाई द्वारा आवास और शौचालय देने का आदेश हुआ था जिसमें रमाशंकर सिंह सेक्रेटरी ने जाँच के बाद पात्रता की आख्या भी लगाई थी और उसको आश्वासन दिया था कि उसे खुली बैठक में चयन करके आवास और शौचालय दे दिया जाएगा परंतु राजनीतिक व प्रशासनिक दुर्भाग्य के चलते उसे आज तक शौचालय भी नही मिला, आवास की तो बात ही छोड़ दीजिए।
वह अपने बीबी और बच्चों के साथ जीवन छप्पर में बडी मुश्किल से बिता रहा है। उसने कई बार जनसुनवाई के माध्यम से भी आवास और शौचालय की मांग की परंतु प्रशासन की लापरवाही के कारण गलत ढंग से आख्या दी जाती रही और वह सहायता प्राप्त होने से वंचित रह गया। ऐसे मामलों को अक्सर मीडिया भी खबर नहीं बनाती। आखिर क्यों ग्राम सचिव द्वारा झूठी आख्या को बराबर पेश किया जाता रहा जिसका हकीकत से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था? जांच में बताया गया कि दिव्यांग चार पहिया वाहन से चलता है,कभी बताया गया कि छप्पर में रहता है और चार पहिया वाहन से चलता है। कभी बताया गया कि पक्के मकान में रहता है।
यद्यपि यह सत्य है कि वह विकलांग चार पहिया वाहन से चलता है, क्योंकि वह पैदल नहीं चल सकता किन्तु किसी दयालु की मदद को उसकी उपलब्धि नहीं कहा जा सकता और न ही इससे चार पहिया वाहन पर उसका कोई अधिकार बन जाता है।
यदि कोई किसी दिव्यांग की सहायता करें तो क्या सरकार को उसकी मदद से भाग जाना चाहिये?
कोरोना महामारी संकट में उसके परिवार को मित्रों द्वारा ही राशन आदि का सहयोग प्राप्त होता रहा है जबकि भूमिहीनता की अवस्था मे भी प्रशासन द्वारा उसे कोई भी सहयोग नहीं दिया गया है। क्या यही प्रशासन का मजबूर परिवार के प्रति उत्तरदायित्व है ?
पीड़ित दिव्यांग ने बताया कि वह अपनी मजबूरी के कारण अपने परिवार की सुरक्षा हेतु बार बार प्रशासन से मदद की भीख माँग रहा है किन्तु कर्मचारियों की गलती के कारण दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है। अब तो उसे सरकार से भी भरोसा उठ गया है और उसे लगता है कि विकलांग को दिव्यांग कहकर सरकार सिर्फ उनका मजाक उड़ा रही है ।
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