पात्र गरीबों को किस कारण नहीं मिल रहे आवास? क्यों लग रहा है योजनाओं को पलीता

जौनपुर जिले के सुइथाकला विकासखंड के अधिकतर गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास के आवंटन में भारत सरकार चाहे जितना भी अपने काम में स्पष्टता होने की बात करे किंतु कर्मचारियों की लापरवाही के कारण जमीनी हकीकत कुछ और ही है जिसके कारण असली पात्र गरीबों को आवास का लाभ नहीं मिल पा रहा है । 


विभिन्न गांव में जनसंपर्क करने के पश्चात यह ज्ञात हुआ कि जो लोग प्रधान या कर्मचारियों को पैसा नहीं दे सकते उनको आवास प्राप्त ही नहीं हो रहा है । क्या सरकार इसी तरह से गरीबों का भला करेगी ? आखिर ऐसे कर्मचारियों व जनप्रतिनिधियों  पर सरकार किस तरह से लगाम लगाएगी जिनकी वजह से पात्र व्यक्तियों को  निशुल्क  सरकारी सुविधाएं नहीं प्राप्त हो पाती हैं ?


 धीरे-धीरे आम जनमानस में  यह  भावना बनती जा रही है कि  सरकारी लाभ उन्हीं लोगों को मिल सकता है जिनकी  नेताओं में पकड़ है और जो धन देने में सक्षम हैं । कुछ लोगों से संपर्क करने पर यह पता चला कि प्रधान या कर्मचारी  ऐसा बताते हैं कि यह सब ऊपर तक देना पड़ता है क्योंकि फाइल आदि बनाने में बड़ा खर्च आता है जिस कारण से  यह पैसा लेना पड़ता है । संभव है  की  वह लोग सत्य ना बोल रहे हो  किंतु  कुछ लोग जो कि समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं वह प्रधान के कार्यों की जांच के लिए लगातार जिले के अधिकारियों के संपर्क में हैं किंतु वह जांच कराने में सफल नहीं हो रहे हैं । साथ ही साथ कुछ घरों की तस्वीरें भी कुछ ऐसा ही बयां कर रही हैं कि वास्तविक पात्र व्यक्ति को आवास नहीं प्राप्त हो रहा है ? क्या एक गरीब आदमी जो परिवार का खर्च नहीं चला सकता उसको छत पाने का कोई अधिकार नहीं है ?  


 इन सब मामलों की जांच कराने का जो लोग प्रयास भी करते हैं, उच्च अधिकारियों द्वारा उनका सहयोग नहीं किया जाता और अंत में थक हार कर नियति को ही अपना प्रारब्ध मानकर वह चुप बैठ जाते हैं ।गरीब आदमी का  कल्याण तो सभी चाहते हैं किंतु उसके लिए आवाज उठाने वाले या संघर्ष करने वाले विरले ही मिलते हैं। जो मिलते भी हैं वह भी प्रशासन के नकारात्मक रवैये के कारण अंततः हताश हो जाते हैं। एक तरह से परोक्ष भ्रष्टाचार इस समाज में सुरसा के मुँह की तरह व्याप्त हो गया है जितना बड़ा सरकारी लाभ मिलना है उसी हिसाब से खर्च लगना तय है। स्वच्छता मिशन के तहत बनने वाले शौचालय में मिलने वाली 12000 रुपये की सहयोग राशि में 2000, आवास में 20000 आदि ये सब गुप्त रेट हैं जिसको सार्वजनिक करने की बात पर लाभ से वंचित होने की धमकी भी मिलती है। आश्चर्य तो यह है कि चकरोड ,खड़ंजा, आरसीसी रोड,नाली , स्ट्रीटलाइट, सोलर लाइट ,ह्यूम पाइप  आदि के नाम पर आने वाले धन को तो पूरी तरह कार्य न करके  पचाते ही हैं  ऊपर से  गरीब व्यक्तियों से भी वसूली कर लेते हैं। शिकायत करने पर उच्च अधिकारी ध्यान नहीं देते। सूचना का अधिकार के तहत माँगी गई सूचना का जवाब नहीं मिलता।   जिस जनता के कल्याण करने के लिए  चुनाव लड़ते हैं  ,जीतने के बाद वही वादा भूल जाते हैं । 


इस तरह से होने वाले अन्याय के विरुद्ध जो समाज एकजुट नहीं हो सकता है उस समाज का यदि शोषण हो रहा हो तो उसमें आश्चर्य कैसा ? अगर समाज में नैतिक मामलों के लिये एकजुटता होती तो निश्चित रूप से पात्र को निःशुल्क उसका हक जरूर मिलता। आज समाजसेवी युवाओं को एक संगठन बनाकर ऐसे मुद्दों का मुखर विरोध करने की आवश्यकता है जिससे समाज में कालनेमि की तरह पैदा हो रहे  नेताओं व अधिकारियों का असली रूप सामने आए और देश व समाज के  वास्तविक विकास की रूपरेखा तैयार  हो सके।

रिपोर्टर

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