शरद पवार विपक्षी दलों के सबसे ज्यादा स्वीकार्य नेता : पारसनाथ तिवारी
- Rohit R. Shukla, Journalist
- Jun 23, 2021
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मुंबई ।। महाराष्ट्र एनसीपी के नेता पारसनाथ तिवारी ने कहा है कि आज के दौर में शरद पवार विपक्षी दलों के सबसे ज्यादा स्वीकार्य नेता हैं,वे राष्ट्र हित मे सभी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। सभी विपक्षी पार्टियों को समझना चाहिए कि वे एकला चलो की नीति को छोड़कर साथ चलो की नीति को स्वीकार करें।
उन्होंने कहाकि इस समय शरद पवार देश के विपक्ष का सबसे बड़ा और विश्वसनीय चेहरा हैं। महाराष्ट्र के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की शक्ति का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि 2019 में उन्होंने बीजेपी को करारा झटका देते हुए उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना के साथ राज्य में सरकार बनाई थी।
श्री तिवारी ने कहाकि 55 सालों के राजनीतिक अनुभव के साथ, शरद पवार 1967 से एक भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव नहीं हारे हैं। तीन बार सीएम बने, साथ ही तीन बार केंद्रीय मंत्री बने, राज्य और केंद्र में विपक्ष के नेता, संसदीय दल के नेता के रूप में कार्य किया और अन्य शीर्ष पदों पर सेवाएं दी हैं। इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी के कद के कई महान नेताओं की तरह, पवार का शीर्ष राजनीतिक नेताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से अच्छा तालमेल है।
गौरतलब है कि शरद गोविंद राव पवार को मराठा क्षत्रप कहा जाता है. वैसे भारतीय राजनीति में उनका कद बहुत बड़ा है. कुछ इस तरह भी कि पिछले 03-04 दशकों की भारतीय राजनीति को उनसे अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. उनकी भूमिका किसी ना किसी तौर पर नजर आएगी ही आएगी. चाहे वो केंद्र और महाराष्ट्र में सत्ताधारी पार्टी के साथ हो या विपक्ष में. महाराष्ट्र में उनकी पार्टी एक बड़ी ताकत है. महाराष्ट्र की सियासत के बल पर वो केंद्र की पालिटिक्स में भी खास रोल निभाते रहे हैं और निभा रहे हैं.
वैसे पवार का खुद सियासी करियर 50 सालों से भी ज्यादा लंबा है. हालांकि वो क्रिकेट की सियासी पिच के भी धुरंधर रहे हैं. मुंबई क्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष पद पर वो दस साल से भी ज्यादा समय तक बने रहे तो साल 2005 से 2008 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और साल 2010 से 2012 तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल के मुखिया भी रहे.
पिछले 50 साल से लगातार महाराष्ट्र की राजनीति में अंगद की तरह पैर जमाए शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर तीन बार शपथ ले चुके हैं. साल 2004 से लेकर 2014 तक वो मनमोहन सिंह की कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे. इसके अलावा पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं.
शरद पवार के राजनीतिक और व्यावहारिक आचरण की ही वजह से सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में भी उनके संबंध हमेशा अच्छे रहे. मौजूदा मोदी सरकार ने उन्हें साल 2017 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मानित सिविलियन पुरस्कार माना जाता है..
शरद पवार की राजनीति की विशेषता शुरुआती दौर से ही सूझबूझ से भरी रही है. यही वजह रही कि साल 1967 में वो एमएलए चुने गए, तब उनकी उम्र महज 27 साल थी. शरद पवार उसके बाद लगातार बुलंदियों को छूते रहे. सियासत में उनके शुरुआती संरक्षक तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्हाण थे. लेकिन सियासी हवा को भांपना और अपने नीचे की जमीन को मजबूत करना उनकी सबसे बड़ी खासियत भी रही.
इसी सूझबूझ और आत्मविश्वास के चलते इमरजेंसी के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी से बगावत की. कांग्रेस छोड़ी. साल 1978 में जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई. राज्य के मुख्यमंत्री बने. साल 1980 में इंदिरा सरकार की जब वापसी हुई तो उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. 1983 में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया ताकि प्रदेश की राजनीति में मजबूत पकड़ बनाकर रख सकें.
उस साल हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार पहली बार बारामती से चुनाव जीते लेकिन साल 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को मिली 54 सीटों पर जीत ने उन्हें वापस प्रदेश की राजनीति की ओर खींच लिया. शरद पवार ने लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा में विपक्ष का नेतृत्व किया.
साल 1987 में वो वापस अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापस आ गए. राजीव गांधी के नेतृत्व में आस्था जता कर उनके करीब हो गए. शरद पवार को साल 1988 में शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम की कुर्सी मिली. चव्हाण को साल 1988 में केन्द्र में वित्त मंत्री बनाया गया.
1990 के विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में 141 पर कांग्रेस की जीत हो पाई थी लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायक की मदद से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की. ऐसा कर वो तीसरी बार सीएम बनने में कामयाब रहे. लेकिन साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद शरद पवार का नाम उन तीन लोगों में आने लगा, जिन्हें कांग्रेस के अगले प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था. इन तीन नामों में नारायण दत्त तिवारी, पी वी नरसिम्हा राव और शरद पवार शामिल थे.
नारायण दत्त तिवारी साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार की वजह से पीएम बनने से रह गए. ये मौका दूसरे सीनियर नेता पी वी नरसिम्हा राव को मिल गया जबकि शरद पवार को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. लेकिन फिर शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति के लिए वापस भेजा गया.
6 मार्च 1993 को सुधाकर राव नाइक को हटा शरद पवार को सीएम बनाया गया गया. लेकिन 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट की वजह से शरद पवार सरकार पर जमकर राजनीतिक हमले हुए. इसका खामियाज़ा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. बीजेपी-शिवसेना ने मुंबई बम ब्लास्ट के मुद्दे पर पवार सरकार पर निशाना साधते हुए साल 1995 में हुए विधानसभा चुनाव को जीत लिया. कांग्रेस को केवल 80 सीटें मिलीं.
साल 1998 के मध्यावधि लोकसभा चुनाव के बाद शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए. लेकिन साल 1999 में जब 12 वीं लोकसभा भंग हुई तो शरद पवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर ने विदेशी मूल के नेतृत्व के सवाल पर सोनिया गांधी पर सवाल उठाया.
कांग्रेस से निष्कासन के बाद नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन किया. शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर पार्टी जरूर बनाई लेकिन साल 1999 के महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में जनादेश न मिलने पर कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार भी बना ली.
साल 2004 से साल 2014 तक पवार लगातार केन्द्र में मंत्री रहे तबसे लेकर अभी तक महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ वहां के लोकसभा सीट पर कांग्रेस से तालमेल बनाए रखा. साल 2014 का लोकसभा चुनाव शरद पवार ने ये कहकर नहीं लड़ा कि वो युवा नेतृत्व को पार्टी में आगे लाना चाहते हैं.
स्टांप घोटाला हो या फिर ज़मीन आवंटन विवाद या फिर अपराधियों को बचाने से लेकर भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ गांठ. इन तमाम मुद्दों पर शरद पवार विपक्षियों द्वारा घेरे जाते रहे हैं. इतना ही नहीं मुबई में 1993 में हुए सीरियल ब्लास्ट और दाऊद के साथ उनके कथित रिश्तों को लेकर विपक्षी दलों द्वारा खूब छींटाकशी हुई. पूर्व आईएएस अधिकारी जी आर खैरनार द्वारा उनपर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप की वजह से साल 1993 में उनकी खूब किरकिरी हुई. यही वजह है कि साल 1995 में पवार जीत का परचम लहराने में नाकामयाब रहे.
पवार पर विपक्षी दल राजनीति में परिवारवाद को थोपने का आरोप लगाते हैं. उनकी पुत्री सुप्रिया सुले और भतीजे अजीत पवार का एनसीपी में उनके बाद की हैसियत रखने को लेकर शरद पवार हमेशा से आलोचना के शिकार रहे हैं. अब तो वो अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी को भी सियासी मैदान में उतार रहे हैं. हालांकि शरद पवार हमेशा से ही व्यावहारिक राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं.
राजनीति में सधे खिलाड़ी की तरह एक-एक चाल सोच-समझकर चलने वाले शरद पवार फिर से महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्र में हैं. हाल में जब महाराष्ट्र में चुनाव हुए तो जिस तरह उन्होंने शिव सेना के साथ मिलकर सरकार बनाई, उससे बीजेपी के दिग्गजों को करारी मात का स्वाद चखना पड़ा. हालांकि बीजेपी ने उनके भतीजे अजित पवार को फुसलाकर अपने पाले में लाने की कोशिश की थी लेकिन इसे उन्होंने बखूबी काट दिया. बीजेपी की महाराष्ट्र में सरकार बनाने की सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं.
पिछले कुछ समय से वो देश की राजनीति में विपक्ष के दमदार नेता और कांग्रेस के सहयोगी के तौर पर उभरे हैं लेकिन इसके बाद भी पवार की हर सियासी गतिविधि पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं. वो बेखटके मोदी से लेकर अमित शाह और अन्य सत्ताधारी नेताओं से मिलते हैं और इसे लेकर खासे कयास भी लगने लगते हैं लेकिन वो क्या करने वाले हैं, इसे समझ पाना आमतौर पर समझ से परे होता है.
दूसरी ओर आज एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के घर राष्ट्रमंच की बैठक के लिए विपक्षी नेता जुटे हैं. NCP से माजिद मेमन और वंदना चौहान, सीपीआई से राज्य सभा सांसद विनय विश्वम पवार के घर पहुंचे. इसके अलावा आम आदमी पार्टी से शुशील गुप्ता, सपा से घनश्याम तिवारी, RLD से जयंत चौधरी, CPM से नीलोत्पल वासु, वरिष्ठ वकील के टी एस तुलसी, पत्रकार करण थापर, आशुतोष, पूर्व राजनयिक के सी सिंह पहुंचे. शरद पवार और यशवंत सिन्हा बैठक की अध्यक्षता कर रह हैं. TMC के उपाध्यक्ष और राष्ट्रमंच के संस्थापक यशवंत सिन्हा शरद पवार के घर पहुंच चुके हैं.
राष्ट्रमंच की बैठक पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, 'ठगबंधन' बैठक तो समय-समय पर होती रहती है, ये बैठक के बाद हाथ पकड़ कर खड़े भी होते हैं लेकिन अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं. इनकी लीडरशिप क्राइसिस है. वहीं केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, समझ में नहीं आया कि लाइक माइंडेड होता क्या है? अजीब दास्तां है ये, कहां शुरू कहा खत्म. कितनी जल्दी लाइक माइंडेड लोगों का क्या हश्र होता है देखा जायेगा.
शरद पवार की मीटिंग पर राहुल गांधी ने कहा, मैं मुद्दों से ना खुद भटकना चाहता हूं, ना आपको भटकाना चाहता हूं. राहुल गांधी ने कहा, दिल्ली में जो भी बैठकें हो रही हैं सही समय आने पर उन मुद्दों पर भी बात करेंगे. बैठक से शिवसेना ने भी किनारा कर लिया है. शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा, पवार साहब एक बड़े नेता हैं और उनसे लोग राजनीति, अर्थव्यवस्था, अन्य मुद्दों पर सलाह लेते हैं लेकिन ये बैठक विपक्षी दलों की बैठक है ये मैं नहीं मानता क्योंकि इस बैठक में SP, BSP,YSRCP, TDP, TRS नहीं हैं.
राष्ट्रमंच के कॉर्डिनेटर घनश्याम तिवारी ने कहा, यशवंत सिन्हा ने राष्ट्र मंच का सिलसिला शुरू किया था और वर्तमान सरकार राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम नहीं कर रही है. क्योंकि उसके पास लीडरशिप नहीं है. सभी लोग जिनके पास देश के लिए अच्छी सोच है वो एक जुट होकर, एक नई सोच के साथ आगे आ रहे हैं. आज की मीटिंग लोगों को बताने के लिए जरूरी है कि अगर सरकार के पास सोच नहीं है तो देश का विजन खत्म नहीं हो जाता है.
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