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राम नाम की महत्ता
राम नाम की महत्ता सर्वविदित है। तुलसीदास ने कहा था कि -राम नाम से मुक्ति मिले पैसे से हर काम , योगी,ऋषि,तपस्वी, संत, महात्मा नर -नारी , चार -अचर जीव -जंतु अपनी मुक्ति ,मनोकामना के लिए परमात्मा का स्मरण करता है। कोई राम नामी दुपट्टा ओढे ,कोई मनिया फेरे ,कोई भजनानंदी बने ,कोई दिखावे ,कोई तंत्र और कोई मन्त्र , का स्मरण करता रहता है। परन्तु अपने आचरण -ब्यवहार ,कर्म -कुकर्म पर ध्यान कभी नहीं देता है। अपने अध्याय -पाठ अर्थात स्वाध्याय पर ध्यान ,चिंतन ,मनन कभी नहीं करता। समस्त धर्मावलम्बिओं ,ग्रंथों का कहना है की कण -कण में भगवान है जैसा कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा था की मै ही सर्वस्त व्याप्त हूँ। जब हमारे ऊपर बिपत्ति आती है तो हम उसी स्थान से देवी -देवता का स्मरण करता हूँ और हमारा कार्य पूर्ण होता है ,इसका इजहार करने के लिए हम अपने स्थान दूर जाते है और चढ़ावा चढ़ाते है। और हम भूल जाते है कि हमारा ईस्ट इसी स्थान से हमारे पार्थना को स्वीकार किया था। कहा गया है कि " भज ले हरी को एक दिन तो है जाना ,इसे ढूडने को नहीं दूर जाना "तो राम का अर्थ -र =रमना ,आम =लोग (चर -अचर प्राणी )अर्थात जो समस्त चर -अचर प्राणियों में रमता है। जो दशरथ के लल्ला राम को राम बनाया ,जो राम में रमता था। जिसकी उपस्थिति में राम ,कृष्ण ,शिव को भगवान कहा गया,जिसका बोध होने पर तुलसी ,कबीर ,नानक,रविदास ,सुर ,काली ने अपने को दास बताया । बंधुओं एक दिन की बात है अयोध्या से एक बाबा जी एक साधारण मनुस्य के पास पहुँचे और उनसे बोले अरे भाई मैं अयोध्या से आया हु, तुम मेरा स्वागत नहीं करोगे ,अरे तुम बैठे क्यों हो मैं दशरथ के लल्ला राम के जन्मभूमि से आया हूँ। अरे भाई तुम कैसे व्यक्ति हो जो भगवान राम को नहीं जानते हो। तो उस व्यक्ति ने बड़ी सरलता के साथ उस साधू से बोला - भाई मै तो उस राम को नहीं जानता ,नहीं जानता की उसका जन्म कहा हुआ है ,और ओ किसका पुत्र है। परन्तु मैं आपको जानता हूँ की आप कहाँ से पैदा हुए। सुनो महात्मा जी आप इस आकासियबृत्ति में घूम रहे थे,घूमते हुए अपने पिता जी के अंदर सूक्ष्म रूप में समाहित हुए और क्रीड़ा के पस्चात माँ के गर्भ में चले गए और नौ (९ )माह के बाद बाहर निकले। रही अयोध्या की बात तो क्या आप जानते है की अयोध्या किसे कहते है -अ +योध्या =अयोध्या ,अर्थात जो योध्या नहीं है। कहा गया है की हारे ,हरी नाम होता है ,जब मै था तो हरी नहीं अब हरी है मै नाही ,इस अयोध्या रुपी शरीर में जो योद्धा रुपी अहम् पाले हो उसे गलाओ फिर यही शरीर आपका अयोध्या हो जायेगा। जब अयोध्या हो जायेगा तो तुम्हारे अंदर परमात्मा का आसान लग जायेगा फिर दशरथ आएगा ,कहा गया है की -राम, राम सब कहे ,दशरथ कहे न कोई। जो एक बार दशरथ कहे ,कोटि जनम सफल होइ। तो अपने दशों इन्द्रियों को संयम कर ,भटकने न दे तब तेरे अंदर चार पुत्र उत्पन्न होंगे राम ,लखन ,शत्रुहन और भरत। जब परमात्मा बिराजमान होगा ,राम बिराजमान होगा तो तेरा मन, लक्ष्य पर होगा और तब लक्ष्मण पैदा हो जायेगा। जब लक्ष्मण आ जायेगा तो शत्रुओं का हनन करने वाला अर्थात शत्रुध्न पैदा हो जायेगा और तेरे अंदर काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,मोह जैसी कोई भी कुरुतियां ,बुराइयां नहीं रहेगी उन सबका हनन हो जायेगा । जब शत्रुध्न आ जायेगा तो तुम्हारे अंदर सब भर जायेगा ,और सृष्टि का समस्त शक्ति तुम्हारे अंदर समाहित हो जायेगा ,तुम सम्पूर्ण हो जाओगे। और तुम्हारे अंदर भरत पैदा हो जायेगा। मन ही देवता ,मन ही ईश्वर ,मन से बड़ा न कोई। मन उजियारा जब -जब होये ,जग उजियारा होय।
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