
भिवंडी के पावरलूम मजदूर बोनस से वंचित, अंधेरे में बीतेगी दिवाली
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Oct 20, 2025
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भिवंडी। कभी "मैनचेस्टर ऑफ पावरलूम" के नाम से मशहूर भिवंडी के हजारों यंत्रमाग (पावरलूम) मजदूर आज भी अपने हक से वंचित हैं। इन मजदूरों की हालत यह है कि वर्षों से लगातार काम करने के बावजूद उन्हें न तो सरकारी पहचान मिली है और न ही बोनस जैसी बुनियादी सुविधाएँ। नतीजतन, हर साल की तरह इस बार भी उनकी दिवाली अंधेरे में बीतने वाली है।
भिवंडी की पहचान पूरी दुनिया में उसके यंत्रमाग उद्योग से बनी है, लेकिन यही मजदूर आज शासन की नजरों से ओझल हैं। कारण यह है कि शहर के अधिकांश पावरलूम कारखानों का पंजीकरण अभी तक “फैक्टरी एक्ट” के तहत नहीं हुआ है। जब कारखाने ही सरकारी रजिस्टर में नहीं हैं, तो उनके मजदूरों का नाम दर्ज होना तो दूर की बात है। परिणाम स्वरूप, ये मजदूर सरकारी योजनाओं और कल्याण सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हैं। कई कारखाना मालिकों ने तो अपने कामगारों को पहचानपत्र तक नहीं दिए हैं। स्थिति यह है कि जो मजदूर 10-12 साल से एक ही फैक्टरी में काम कर रहा है, उसे भी जरूरत पड़ने पर मालिक अपना कर्मचारी मानने से इंकार कर देता है। इस लापरवाही के लिए मजदूर विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जो हर बार “कर्मचारी की कमी” का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
कौमी एकता फाउडेशन के अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता तुफैल फारूकी का कहना है कि शहर और आसपास करीब 6 से 7 लाख यंत्रमाग हैं, जिन पर लगभग साढ़े तीन लाख मजदूर काम करते हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि और कुछ संगठन इन उद्योगों को सरकारी सुविधाएं दिलाने की बात तो करते हैं, लेकिन फैक्टरी रजिस्ट्रेशन और मजदूरों के हक के लिए ठोस पहल कोई नहीं करता।पहले यंत्रमाग क्षेत्र के अधिकांश मजदूर अशिक्षित हुआ करते थे, मगर अब नई पीढ़ी शिक्षित है और मजदूर संघों के माध्यम से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है। वहीं, दूसरी ओर यह भी सच है कि नई पीढ़ी अब इस उद्योग में भविष्य नहीं देख रही, जिसके कारण पावरलूम उद्योग में कामगारों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इससे भिवंडी की "यंत्रमाग नगरी" के रूप में पहचान खत्म होने का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि भिवंडी के सभी यंत्रमागों को “फैक्टरी एक्ट” के तहत पंजीकृत किया जाए और “यंत्रमाग कामगार कल्याण महामंडल” का गठन कर मजदूरों के भविष्य को सुरक्षित बनाया जाए। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में मजदूरों का वेतन सीधे बैंक खातों में जमा किया गया था — इसी तरह अगर सरकार नियमित रूप से सभी नीतियों को लागू करे तो मजदूरों के साथ-साथ पावरलूम उद्योग का भी भविष्य उज्जवल होगा।
— तुफैल फारूकी
कौमी एकता फाउडेशन के अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता
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