'कैसे माफ करूं मैं तुझको'

सोचो आएगा  एक दिन ऐसा

 तू मांगेगा माफ़ी जब  मुझसे

 मैं क्या माफ कर पाऊंगी तुझको

जो दर्द दिया है तूने मुझको

जिसका मरहम अब तक  मिला नहीं मुझको

बोलो कैसे माफ करूं मैं तुझको

बिन पानी तड़पे मछली जैसे

तड़पाया तूने इस कदर मुझको

बोल कैसे माफ करूं मैं तुझको

रूह  निकले  जिस्म से कैसे

नासूर जख्म दिया है जो मुझको

बोलो कैसे माफ करूं मैं तुझको

तूने मुझे जीना सिखलाया

दोहरी जिंदगी जीना मुझको

वक्त ने मेल कराया  मुझसे

मतलबी लोगों से इस जग  में

दिल के अरमां को मरने पर

इतना मजबूर किया तूने मुझको

बोलो कैसे माफ करूं मैं तुझको।


(नसू एंजेल) 

नागपुर ,महाराष्ट्र

रिपोर्टर

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