एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके मां की स्तुति करने से दु:खों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है -- डॉ अमरनाथ उपाध्याय

कैमूर ।। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के अर्चक/ पुजारी डॉ अमरनाथ उपाध्याय  ने बताया की पंचमं स्कन्दमातेति....मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंद माता नाम प्राप्त हुआ है। भगवान स्कंद जी बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं। 

पांचवें दिन देवी स्कंदमाता यानी की स्कन्द (कार्तिकेय) कुमार जी के माता की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के  कारण  आज के इस देवी को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। 

शास्त्रों में इनका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण स्कन्द माता का उपासना करनेवाला उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय को प्राप्त होता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों में शक्ति प्रदान करने वाली है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं हैं,कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।

मां स्कंद माता के संदर्भ में विविध मंत्र व स्त्रोतों का वर्णन है। जो अति कल्याण प्रद व भक्तों के दुखों को दूर करने वाले तथा मनवांछित फलों को देने वाले हैं। स्कन्द माता के उपयोगी मंत्र जिनका स्मरण करने से व्यक्ति को वांछित फल की प्राप्ति होती है। स्कन्द माता की पूजा करने से भक्तों को इच्छित फल तो प्राप्त होता ही है। साथ ही माता के इस विग्रह की अर्चना से दाम्पत्य जीवन में वात्सल्य की प्राप्ति होती है। मातारानी संतान की कामना को पूर्ण करने वाली हैं। व्यक्ति की बुद्धि निर्मल व चित्त प्रसन्न होता है। साथ ही घर परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने की शक्ति प्राप्त होती है।

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