विकास कार्यों की स्वयं बाधक है सरकार

संवाददाता श्याम सुंदर पाण्डेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)--बिहार सरकार के द्वारा चकबंदी अधिनियम कानून के तहत प्रखंड में कुछ गांव की चकबंदी कर दी गई और बाकी गांव का सर्वे भी पूरा नहीं हुआ और चकबंदी का कार्य पूर्ण रूप से बिहार में सरकार के द्वारा बंद कर दिया गया। जिसके परिणाम स्वरूप बिखरे हुए किसान आज भी एक जगह इकट्ठा होकर अपनी खेती के लिए साधन बनाकर अपनी खेती नहीं कर पा रहे है। साधन के अभाव में बिखरे हुए किसान आज भी अच्छे पैदावार से वंचित है जो सरकार के लचर व्यवस्था का परिणाम है। व्यवस्था सरकार की और परिणाम भुगत रहे हैं किसान यह कैसी मजबूरी है सरकार की या बेबसी। जिन किसानों के विकास की दवा करती है सरकार तो उन किसानों के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार क्या उचित है। बता दे कि प्रखंड के अंतर्गत सन 1987 में चकबंदी का काम पूर्ण रूप से फाइनल कर पैमाइश यानी नापी कराकर किसानों की जमीन किसानों को सुपुर्द कर दिया गया और सरकारी दर से लगान वसूला जाने लगा लेकिन 37 वर्ष बीत जाने के बाद भी करीब एक दर्जन गांव का नक्शा किसने को उपलब्ध नहीं कराया गया जिसके परिणाम स्वरूप विकास कार्यों के लिए बनाई गई योजना नक्शे के अभाव में मूर्त रूप नहीं ले रही हैं। चकबंदी के बाद छोड़े गए नाली और रोड पूर्ण तरह से किसानों के कब्जे में है और विकास कार्य करने के लिए किसानों द्वारा कब्जा किए गए जमीन को बगैर पैमाइस किए  निकलना मुश्किल हो रहा है बगैर नक्शे के किसान भी मानने को तैयार नहीं हैं। लालू सरकार के समय में जो चकबंदी निर्विघ्न रूप से चल रही थी उसे लालू की सरकार ने पूर्ण तरह से बंद कर दिया जिसके कारण चकबंदी का काम  ठप्प  हो गया। लेकिन सुशासन बाबू की सरकार आने के बाद भी बिहार की चकबंदी पूर्ण रूप से अपनी रफ्तार में नहीं आ सकी जिसका परिणाम रहा की आज तक नापी करा कर दखल दिलाये गए मौजो का नक्शा आज तक किसानों को उपलब्ध नहीं हो पाया। जिसका परिणाम रहा कि आज तक सरकार के द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है और किसान उस योजना से वंचित है।

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