हंसते-हंसते जिन लोगों ने फांसी के फंदे को चूमा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उन्हें एक फूल भी नसीब नहीं

संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट

दुर्गावती (कैमूर)-अपने आने वाले संतति के लिए जिन शहीदों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चुम्मा और गोलियां खाकर अपने पीढ़ियों को सुरक्षित रखने का संकल्प लिया था, जिनके बल पर आज हम चयन की सांस ले रहे हैं, क्या उन्हें एक फूल भी नसीब नहीं होनी चाहिए। भले ही देश में दिखावे के लिए राजनेता या अधिकारी जी रहे हो लेकिन साल में एक दिन उन शहीदों के ऊपर जाकर माल्यार्पण तो करते ही है। लाल किला पर झंडा फहराने से पहले देश के राष्ट्र अध्यक्ष समाधि स्थल पर जाकर पुष्प अर्पित करते हैं। लेकिन दुर्गावती प्रखंड में शहीद स्तंभ सह स्वतंत्रता सेनानी स्मारक पर एक पुष्प भी नहीं चढा क्या वे शहीद एक पुष्प के भी अधिकारी नहीं है। जब से दुर्गावती में नए प्रखंड भवन का निर्माण हुआ है तब  से आज तक उस शहीद स्मारक पर माल्यार्पण करना और फूल चढ़ाना प्रखंड मुख्यालय में कार्यरत पदाधिकारी और झंडो तोलन में शामिल प्रतिनिधि प्रमुख उस पर ध्यान नहीं देते जिसके कारण प्रत्येक वर्ष उनका अपमान होता रहता है क्या इस उचित समझा जाना चाहिए। उसी परिपाटी के तहत इस स्वतंत्रता दिवस के 78वी वर्षगांठ पर भी प्रखंड कार्यालय में इस पुनरावृत्ति को दोहराया गया क्या यह उन शहीदों का अपमान नहीं है तो क्या कहा जाए। यदि 50 फीट दूरी पर स्थित पुराने प्रखंड भवन पर जाना और शहीदों के स्तंभ पर माल्यार्पण करना अनुचित लगता है तो नए प्रखंड भवन पर ही उस स्तंभ को क्यों नहीं स्थापित कर दिया जाता। किसी खास व्यक्ति को क्या कहा जाए जब पढ़े लिखे प्रखंड मुख्यालय में कार्यरत अधिकारी और प्रतिनिधि के रूप में विराजमान पंचायत के प्रतिनिधि कार्यक्रम में शामिल रहते हैं तो क्या उन्हें अपने जिम्मेदारियो से दूर माना जाना उचित लगता है और  ऐसा माना जाना चाहिए। समाचार पत्र के माध्यम से ऐसी घटनाओं का जिक्र अक्सर अखबार के लोग करते हैं फिर भी न कोई अधिकारी न कोई राजनेता कुछ बोलते सब चुप हो जाते है क्या उन शहीदों का यह अपमान नहीं है तो क्या है। आज का समाज और राजनेता जिम्मेवार पदाधिकारी अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या दिखला और सिखला कर जाना चाहता है आज के परिवेश कुछ कहना मुश्किल है।

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