आजादी के वर्षो बाद भी शहीदों की प्रतिमा लगाना उचित नहीं समझे राजनीतिक वर्ग

 संवाददाता श्याम सुन्दर पांडेय की रिपोर्ट 


दुर्गावती(कैमूर)- देश आज आजादी के बाद से 77 वा वर्षगांठ मानने जा रहा है लेकिन जिन लोगों ने अपना सब कुछ छोड़कर देश के लिए चले गए उनका प्रतिमा लगाना भी यहां के राजनेता खासकर सांसद और विधायक मंत्री उचित नहीं समझे। आजादी के कुंभ में लड़ते-लड़ते अंग्रेज सरकार के जेलो में ही अपना प्राण छोड़ने वाले दुर्गावती प्रखंड के अनमोल तीन शहिद गायत्री चौबे भोलाराम अंतू हजम अपने घर बार को छोड़ जेल में ही अंतिम सांस ली। आजादी के दौरान आंदोलन में शामिल गायत्री चौबे को अंग्रेजी सल्तनत ने  इतना पिटा की दोनों कान से बहरे हो गए थे और उनकी लंबी-लंबी मूंछे को भी उखाड़ लिया गया। क्रूर शासको के द्वारा मारपीट के कारण जेल में ही अक्सर बीमार रहने लगे और कुछ ही समय में अपना दम तोड़ दिया लेकिन दमनकारी अंग्रेजों ने उनकी लाश तक को उनके परिजनों को सुपुर्द नहीं किया। गायत्री चौबे की नई नवेली दुल्हन अपने दूधमुहे  बच्चों के साथ अपना दिन किसी तरह से काटती रही और बच्चों के नौजवान होने से पहले ही दम तोड़ दिया। किसी तरह से बच्चे नौजवान हुए और पुनः परिवार बढ़ाने के लिए शादी कर परंपरा जारी रखी। बता दे की देश आजाद होने के बाद दुर्गावती प्रखंड के तमाम स्वतंत्रता सेनानी उनके विधवा पत्नी और बच्चों का भी ख्याल नहीं रखा न सरकार के  द्वारा उनके परिवार को कोई आर्थिक मदद मिली न आज भी मिल रही है। जिनकी लाशों पर देश आजाद हुआ क्या वैसे महापुरुषों का प्रखंड कार्यालय परिसर में प्रतिमा भी नहीं लगनी चाहिए। सत्ता के सुख में मग्न राजनेताओं ने एमपी विधायक और मंत्री तो बन गए लेकिन इस गमगीन परिवेश को समझना भी उचित नहीं समझा न कभी समझने का प्रयास किया प्रतिमा तो दूर की बात है। वैसे महापुरुष तो कदाचित ही देश में जन्म लेते हैं जो देश के लिए कुर्बान हो जाए। बतादे की करोड़ की  गाड़ियों पर चलने वाले राजनेता आजकल तो जन्म ले चुके हैं उन्हें उस दर्द का एहसास कहा है। समाचार पत्र के माध्यम से जनता सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है की इन शहीदों की मूर्ति कम से कम प्रखंड परिसर में लगे ताकि आने वाली पीढ़ियां इन तीनों महापुरुषों को याद कर सके जिससे भारत के इतिहास में दुर्गावती प्रखंड का इतिहास जीवित रहे।

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