आरक्षण की जहर और जाति की लहर से देश की जनता भ्रमित

संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती (कैमूर)-- संवाददाता की कलम से देश में आरक्षण के नाम पर सुविधा प्रतिभावान छात्रों को जहर देने का काम कर रही है और जाति की लहर देश की दिशा को बदलकर देश की एकता को कमजोर करने की भूमिका निभा रही है। देश में जाति की लहर बह रही है जहां देखो जाती ही जाति का खेल नजर आ रहा है राजनीतिक दल से लेकर सरकारी महकमे के ऑफिस ,यहां तक की न्यायालय भी सुरक्षित नहीं है। देश में मिल रही सरकारी नौकरियां नौकरी में प्रमोशन तक में भी जाति का खेल जारी है। जातीय आधारित सुविधा जातिय आधारित चुनाव में टिकट जातीय आधारित जनगणना जातीय आधारित संविधान में फेर बदल जातीय आधार पर कृषि के लिए बने पैक्स में सदस्य बनाना तक का खेल जारी है, यही नहीं लोकसभा और विधानसभा हो या छोटे चुनाव में भी जातीय आधारित मतदान भी लोग करते नजर आ रहे हैं।  हिंदू बाहुल्य देश को जातियों के आधार पर टुकड़े-टुकड़े हिस्सों में कर के बाट डाला गया, यही तक यह खेल खत्म न होकर भारतीय लोकतंत्र के लिए बने चुनाव को कई टुकड़ों में बांटकर कई महीनो में चुनाव कराने की परंपरा बना डाली गई। देश में जो समानता का अधिकार  मिला है उसका परिहास करने का सबसे बड़ा प्रमाण है। योग्यता प्राप्त छात्र-छात्राएं इस आरक्षण की वजह से आज देश में बलि चढ़ाया जा रहे हैं जो देश के विकास के लिए एक बहुत बड़ा रोड़ा है। विश्व के तमाम देश अपने देश में योग्य और मेधावी छात्रों को लेकर जहां नई मंजिल पर पहुंच रहे हैं वही आज भारत और भारत के राज नेता अपने देश में प्रतिभावान छात्रों को विकास की धारा से दूर रहकर देश को गर्त में ले जाने पर तुले हुए हैं। जातीय आधारित कानून बनाकर किसी जाति को जाति सूचक शब्द बोलने पर वीना जांच किए बोला है या नहीं जेल की व्यवस्था कर दी गई क्या बाबा साहब अंबेडकर ने इसकी इजाजत दी थी। इस देश की लचर ,जातिय ,पक्षपातीय व्यवस्था के चलते इस देश के राजनेताओं को भी विशेष सुरक्षा की जरूरत होती है। जिस देश में राजनेता जनता का प्रतिनिधि हो उस नेता को अपने ही देश में जनता से खतरा हो वह कैसा नेता है इस पर कभी विचार किया है राज नेताओ ने की क्यों जरूरी है उनकी सुरक्षा यदि जनता से डर है तो चुनाव ही नही लड़ना चाहिए उन नेताओ को। किसी संत ने कहा है रोपे पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय जो राज नेताओ ने बोया है उसे तो काटना ही पड़ेगा लेकिन यह उनके तक ही सीमित न होकर जनता तक पहुंच चुकी है और जनता भी उसकी चपेट में आ रही और एक कहावत और चरितार्थ हो रही है बांड बांड त गइल साथे नौ हाथ के पगहो ले ले गइल।

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