सरकारी नौकरी बाबू की दलान

 संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय 

दुर्गावती (कैमूर)-- सरकारी नौकरी प्राप्त कर्मचारी चाहे किसी विभाग के हो वे नौकरी को अपनी विरासत समझ बैठे है। उन्हें पता है कुछ भी गलत होता है तो इसकी जिम्मेवारी उनकी नहीं होगी और उस गलती का परिणाम जनता भुगतेगी।कदाचित यदि कार्रवाई भी होती है तो कुछ समय के लिए निलंबित फिर अपने पद पर बहाल होना है उन्हें नौकरी जाने का कोई भय सताता ही नहीं। प्रमाण स्वरूप  बैंक में यदि खाता खोलना हो तो सारा कागजात चाहिए लेकिन उस खाते के साथ सारे कागजात को लिंक नहीं किया जाता है न ही दिए गए कागजात के अनुसार पासबुक पर नाम लिखा जाता हैं जिसका परिणाम जनता  अन्य कार्यों के उपयोग के समय भुगती है और उसे पुनः बैंकों का चक्कर लगाना पड़ता है। उसी तर्ज पर सरकार के अधीन आने वाले शिक्षा विभाग स्वास्थ्य विभाग जिला से लेकर प्रखंड मुख्यालय चकबंदी कार्यालय जहां देखो चारों तरफ अशुद्धियां ही अशुद्धियां नजर आ रही हैं। जनता को अपने दस्तावेज को शुद्ध करने के लिए कई महीनो तक दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है। लेकिन सरकार में बैठे बरिया पदाधिकारी और मंत्री गण इस गलती के लिए अधिकारियों को सजा की जगह सुरक्षित करने में लगे हैं। सरकार तो पहले से ही मन बनाए बैठी है की सबसे कमजोर और कम अंक, नंबर वाले आयोग कर्मचारियों को ही बहाल करना है चाहे सरकार का कोई विभाग क्यों न हो। सरकार को जनता के परेशानियों का ख्याल कहां है,कौन करेगा आम जनता का ख्याल और कैसे दफ्तरों में सुधार की प्रक्रिया चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। किसी विभाग के दफ्तर ऑफिस में जाइए तो आप एक दिन में अपना काम निपटाकर वापस नहीं आ सकते इसलिए जनता को लगता है कि यही फरमान सरकार के द्वारा कर्मचारियों को दिया गया है। अब तो सब कुछ ऑनलाइन कर दिया गया है और कंप्यूटर पर बैठे कर्मचारी दस्तावेज देखकर चाहे तो तुरंत सुधार कर दें लेकिन ऐसा नहीं हो पता क्योंकि इन कर्मचारियों के ऊपर किसी का दबाव नहीं है। जब तक सरकारी नौकरी नहीं मिली रहती है तो उसको पाने के लिए कई मन्नते मानी जाती है और जब नौकरी मिल जाती है तो उस सरकार की नौकरी को नौकरी करने वाला कर्मचारी अपनी विरासत समझ लेते है। एक तरफ निजीकरण का विरोध राजनेता करते हैं लेकिन निजीकरण में काम कितनी जल्दी और आसानी से निपटाए जाते हैं इस तरीके का ख्याल कहां है। इस  तौर तरीके की तरफ तो उनका ध्यान नहीं जाता आखिर क्यों जब निजीकरण में मानव ही काम करता है और सरकारी में भी तो सरकारी में लापरवाही क्यों यह एक महत्वपूर्ण सवाल राजनेताओं से है। आखिरकार सरकारी महकमें को कौन सुधरेगा और कर्मचारी गलती करता है तो जनता क्यों परेशान होगी क्यों नहीं उन कर्मचारियों को दंडित किया जाता जो गलत किए हुए हैं। लगता है कार्रवाई से भय मुक्त कर्मचारी सरकारी नौकरी को अपना व्यवसाय अपनी विरासत समझ बैठे है।

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