सत्यगाथा

पामर पापी नीच कुछ, धरती पर जो बोझ 

हत्या  का  षडयंत्र  सभी , रचते  बैठे रोज 

रचते   बैठे   रोज , नमो  रोके   ना  रुकता 

किस माटी का बना लाल डरता ना झुकता 

कह बृजेश कविराय , करेंगे शिव रखवाली 

चले  निगलने  सूरज  को , भुनगे भौकाली 

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