स्वयं घोषित उत्तर भारतीय छुटभैया नेताओं से रहे सावधान हिन्दी भाषीय मतदाता ?
- महेंद्र कुमार (गुडडू), ब्यूरो चीफ भिवंडी
- Apr 10, 2019
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दलाल कर रहे आपके मत का सौदा
भिवंडी ।। भिवंडी लोक सभा २३ में सभी पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपना अपना नामांकन अर्ज चुनाव अधिकारी के समक्ष दाखल कर चुके हैं। भिवंडी लोकसभा सीट पर भाजपा+ शिवसेना गठबंधन उम्मीदवार सांसद कपिल पाटिल, कांग्रेस + राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन उम्मीदवार पुर्व सासंद सुरेश टावरे, समाजवादी पार्टी उम्मीदवार डाँ नुरुद्दीन निजाम अंसारी , भाजपा व शिवसेना बागी अपक्ष उम्मीदवार सुरेश म्हात्रे उर्फ बाल्या मामा,भारिप बहुजन महासंघ +एम आई एम वंचित बहुजन आघाडी उम्मीदवार अरुण दामोदर सांवत , के बीच ही मुख्य मुकाबला होने जा रहा है।
गौरतलब हो चुनावी मौसम आते ही उम्मीदवारों के आगे पीछे छुटभैया नेता चक्कर लगाने लगते हैं। भिवंडी मजदूर बाहुल्य क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ज्यादातर मतदाता उत्तर भारत से आते हैं। वही पर निर्णायक भूमिका के रुप में हिन्दी भाषीय मतदाताओं को माना जाता है। जिन्हें लुभावने के लिए उम्मीदवारों ने स्वयं घोषित छुटभैया उत्तर भारतीय नेताओं को एजेंट बनाकर मैदान में उतारा जाता है। कामतघर, भण्डारी कंपाउड, अंजुर फाटा, रावजीनगर, मीटपाडा ,खाडीपार चविद्रा ,नागांव आदि क्षेत्रो में लाखों की सख्या में हिन्दी भाषीय मतदाता रहते हैं। इन्हीं के बीच छुटभैया उत्तर भारतीय समाज के दलाल नेता चुनाव के मौसम में जाल बिछा कर अपनी अपनी दुकान चमकाने में लगे रहते हैं। इसके साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से राजकीय पक्षों पर विभिन्न प्रकार के आरोप व प्रत्यारोप लगाते हुए उम्मीदवारों को धमकाने के कार्य को अंजाम देते रहते हैं। जो इन छुटभैया नेताओं की रणनीति रहती है। उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के समय इन्हें मानने का खेल भी खेला जाता है। जो उम्मीदवार व छुटभैया नेताओं की आपसी साठ गाँठ होती है। जो पुर्ण रुप से हिन्दी भाषीय समाज के मतदाताओं को लुभावने के लिए किया जाता है।
उत्तर भारतीय समाज के काई जागरुक मतदाताओं का मानना है। कि भिवंडी लोक सभा क्षेत्र में उत्तर भारतीय समाज पुरी तरह बिखरा हुआ है। इसके साथ ही समाज का मार्गदर्शन व नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। यहाँ पर उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ बिहार आदि हिन्दी भाषीय प्रांतो के मतदाता रहते है। इसके साथ ही काई गुटों में बटें हुए हैं। नगर पालिका व अन्य चुनावों में किसी पक्ष द्वारा इन्हें चुनाव लड़ने का बहुत कम मौका दिया जाता है। या फिर ऐ सिर्फ दिखावें की राजनीति करते हैं। कोई भी पक्ष इन छुटभैया उत्तर भारतीय समाज के नेताओं को सम्मान नहीं देता। सिर्फ वोट लेने के इस्तेमाल किया जाता है। कुछ छुटभैया उत्तर भारतीय समाज के तथाकथित नेताओं द्वारा चुनाव के समय इनका सिर गिनवाकर भेड़ बकरी के तरह बेच दिया जाता है।
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