अध्यात्म

अध्यात्म - अध्यात्म दो शब्दों से बना है प्रथम- अध्याय अर्थात पाठदुसरा-आत्म अर्थात आत्मा जिस तरह से हम पुस्तक के अमुक पाठ का अध्ययन करते हैं, तो हमें उस पाठ के अच्छाई-बुराईगुण-अवगुण के बारे मे ज्ञात होता है और हमारे ऊपर उसका प्रभाव पड़ता है और हमारी दृष्टि वैसी बनती है और हमारे अंदर संस्कार वैसा ही उत्पन्न होता है ठीक उसी तरह से पूरी सृष्टि परमात्मा की बनाई एक किताब है और समस्त प्राणी या व्यक्ति उस किताब का एक अध्याय है यदि हम अपने अध्याय का प्रतिदिन अध्ययन करें कि आज हमने क्या गलत किया और क्या सही किया तो हमारे अंदर की बुराईयां कुरुतियां धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी और हम उस सर्वशक्तिमान परम सत्ता के शरण में होंगे तभी अध्यात्म का अर्थ स्पष्ट होगा |      आध्यात्म का क्षेत्र  बहुत  व्यापक है | जिसके सामने पूरी सृष्टि शून्य समझ आती है ऐसा प्रतीत होता है  सृष्टि का आरम्भ और अंत वही से होता है |और पूरी सृष्टि में जो भी व्यक्ति ,वस्तु ,प्राणी, चर -अचर ,दिखाई  देता है उसमे वही परम सत्ता, परमात्मा का अंस विराजमान होता है | और वह घट-घट व्यापी है | हम  कह सकते है, कि वह कण-कण में व्याप्त है | स्वयं यह आत्मा उस परमात्मा का संगम स्थल है | जहाँ पर उस निर्विकार ,निरंकार ,से मुलाकात होता है |  पूरी सृष्टि  छोटी नजर आने लगती  है |परंतु आध्यात्म को सही रखने के लिए स्वाध्याय  का आश्यकता पड़ता है | जो हमें सत्संग ,सत्त विचारों के श्रवण और महापुरुषों की जीवनी के  अध्ययन से ही  प्राप्त होती है | वैसे तो स्वाध्याय का अर्थ स्वयं प्राणी, व्यक्ति से है | जो किसी भी व्यक्ति, प्राणी को प्रतिदिन अपने इस पाठ को पढ़ना चाहिये या विचार करना चाहिए|

   जिस तरह से एक व्यवसायी दिन के समापन के बाद अपने हिसाब -किताब का अवलोकन करता है | उसी तरह  से हर व्यक्ति ,प्राणी को शयन के पूर्व पूरे  दिन का क्रिया - कलाप एक बार पुनः  देखना चाहिए कि  आज  हमसे मनसा, वाचा, कर्मणा अर्थात मन से, वाणी से, कर्म से कोई व्यक्ति, वस्तु, प्राणी आहत तो नहीं है।  फिर अगले दिन से  हमारे अंदर की कुरुतियां धीरे-धीरे समाप्त होने लगेगी और हमारे अंदर क्रमिक सुधार होने लगता  है।  परन्तु हमें अपने पाठ को देखना जरूरी है। एक दिन कि बात है। एक व्यक्ति एक लट्ठ लिया और अपनी गठरी पीछे लटका कर बहुत ही मस्त चाल से झूमते-झूमते जा रहा था। कुछ दूर जाने पर एक दूसरा व्यक्ति मिला और उसने कहा  भाई मेरे पास कोई साधन नहीं है। कृपया मेरी भी गठरी लट्ठ में लटका लें। और उसने उस व्यक्ति की गठरी सामने लट्ठ में लटका लिया। और चलने लगा। कुछ दूर चलने पर उसने सामने वाली गठरी में देखा और सहसा बोला, अरे भाई आप कितने भ्रस्टाचारी है, आप ने तो चोरी किया है ,आप ने तो हत्याएं किया है। तो दूसरा व्यक्ति बोला भाई साहब मेरी गठरी सामने है। इसलिए आप को मेरी बुराई दिखाई दे रही है। कभी अपनी गठरी को सामने कर के देखो तो मालूम होगा कि आप के द्वारा कितना अनैतिक, कर्म-कुकर्म हुए है उस पर आप ने कभी विचार नहीं किया। फिर भी आप ने मेरी कमियों को बताकर मेरे ऊपर अतिकृपा किया है। जिससे हमारे दर्पण पर लगे धुल स्वच्छ  हो जायेगें। परन्तु आप भी अपने पाठ का  स्वाध्याय कर अपनी बुराईयों, कुरूतियों से आप भी दूर हो सकते है। इस स्वाध्याय कर अध्याय में प्रवेश कर सकते हैं| 

                  " जहाँ सतसंग होता है ,वहां पर नित्य जाओ तुम। हमें फुरसत नहीं  कर ये मौका मत गवांवों तुम"   

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