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मेरे मेहबूब को समर्पित
- Hindi Samaachar
- Jun 23, 2018
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तुम जो सपनो में भी आ जाये तो मेला कर दे
गम के रेगिस्तान में भी बारिश का रेला कर दे
याद है ही नहीं वो आये जो तन्हाई में
उसकी याद आये तो मेले में भी अकेला कर दे
मैं सोचता था कि तुम गिर कर सम्भल जाओगी
प्रकाश बनकर अंधेरो को हटा जाओगी
ना तो मौसम था ना हालात ना तारिख ना दिन
हमें मालूम नहीं था कि तुम ऐसे बदल जाओगी
मुझे आज जो कर गयी पागल ओ हवा कौन सी है
जो जख्में दिल को करे सही ओ दवा कौन सी है
तुमने ही इस दिल को गिरफ्ततार आज कर तो लिया
अब जरा ये तो बता दो मुझे की वो दवा कौन सी है
हमें कुछ मालूम नहीं है हम क्यू बहक रहे है
रातें जल रही है और दिन भी दहक रहे हैं
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते है
तुम भी बहक रही हो हम भी बहक रहें हैं
बरसात भी नहीं है फिर भी बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई है जुल्फे और हम उलझ रहे हैं
मदहोश एक भौंरा क्या चाहता है तुम से
तुम भी समझ रही हो हम भी समझ रहे हैं
आज भी हसीन सपने आंखों में खिल रहे हैं
आंखें बंद हैं फिर भी आंसू निकल रहे हैं
निदें कहां से आये बिस्तर पर अकेले ही
वहा तुम तड़प रही हो यहा हम तड़प रहे हैं
डाली से रूठ करके जिस दिन कलि गयी थी
उसी ही दिन से अपनी नसीब छली गयी थी
अन्तिम मिलन समझकर तुम्हे देखने गया तो
था बस डिपो खाली बस ही चली गयी थी
एस.एस.पी.बी.सी.
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