संघात और व्याघात

संघात का शाब्दिक अर्थ होता है -जुड़ना और व्याघात का शाब्दिक अर्थ होता है -टूटना। यह सृष्टि का शाश्वत सत्य है। हम कह सकते है कि हमारे चक्षु के सामने जो भी वस्तु ,व्यक्ति ,प्राणीग्रह ,उपग्रह तारें आदि दिखाई देता है उन सभी में एक निश्चित समय में जुड़ने का कार्य होता है। और फिर उसी वस्तु ,व्यक्ति ,प्राणीग्रह,उपग्रह नक्षत्र और तारों आदि में एक समयावधि में टूटने का कार्य होने लगता है। फिर वह धीरे -धीरे समाप्त हो जाता है।जैसा कि हम देखते है कि शिशु जन्म लेता है।और धीरे-धीरे उसका अंग विकसित होता है। फिर बालक बनता है ,बालक से किशोर बनता है ,किशोर से युवा बनता है ,युवा से प्रौढ़ बनता है। प्रौढ़ता के  बाद शेल बनने कि क्रिया बंद होने लगती है। फिर हमारे अंदर शेल टूटने क्रिया होने लगाती है।  हमारा शरीर जीर्ण तथा कमजोर होने लगता हैअर्थात व्याघात होने लगता है। और एक समय ऐसा आता है। की वह व्यक्ति ,वस्तु ,प्राणी ,ग्रह,उपग्रह ,नक्षत्र और तारों आदि का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। परन्तु एक चीज मात्र रह जाता है -कर्म। अब आप जैसा कर्म करते है। वैसा ही आपका वंशज आपका यश -अपयश गान करता है। परन्तु आप यह न भूलें आप के ही कर्मों से और आप के ही धर्मों से आप के आने वाले वंशज का भविष्य होता है। इसलिए कहा गया कि-बढ़ें पूत पिता के धर्मे खेती उपजे अपने कर्मे।'जैसा की राजा भगीरथ ने अपने साठ हजार पुरखों को तारने के लिये माँ गंगा का आह्वाहन  किया था। आज भी हमलोग उनका गुणगान करते है।सतकर्म करें -स्वाध्याय करें

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